एक तरफ देश में उच्च शिक्षा के लिए आईआईटी,आईआईएम या आईआईएमसी जैसे और भी कई टॉप के सरकारी संस्थान हैं जहां प्रवेश के लिए कठोर परिश्रम करने पड़ते हैं वहीं बेसिक शिक्षा पर ध्यान दे तो वहां कि स्थिति बेहद खराब है।
दोनों ही सरकारी संस्था होने के बावजूद शिक्षा व्यवस्था में इतना अतंर क्यों? क्या उच्च शिक्षण संस्थानों की तरह बेसिक शिक्षण संस्थानों में शिक्षा दे पाना कठिन है? क्या बेसिक शिक्षा व्यवस्था को भी उच्च शिक्षा की तरह नहीं बनाया जा सकता?
उच्च शिक्षा के लिए छात्रों की संख्या सीमित है वहीं बेसिक शिक्षा के लिए ज्यादा। फिर भी शिक्षा में इतने बड़े अंतर को क्या कम नहीं किया सकता? किया जा सकता है लेकिन उसके लिए सबसे पहला काम है नियमित दूरी पर स्कूलों को होना। इसके बाद शिक्षकों की बहाली में पारदर्शिता लाना। आज भी देश में कहीं-कहीं सरकारी स्कूलों की दूरी बहुत ज्यादा है। स्कूलों में बच्चों और शिक्षकों का ठीक ठाक अनुपात हो, जिससे पढ़ाई की व्यवस्था बेहतर हो।
क्या सरकारी स्कूलों में एडमिशन के लिए भी सरकार सिमतुल्ला, नवोदय या सैनिक स्कूलों जैसी व्यवस्था नहीं कर सकती है? जिससे बेसिक शिक्षा के दौरान ही बच्चों के बीच एक अच्छी प्रतिस्पर्धा देखने को मिले और शिक्षा का बेहतर माहौल बने।
ऐसा नहीं है कि सरकर पैसे खर्च नहीं करती। बहुत करती है। लेकिन पैसे का सही से इस्तेमाल नहीं हो पाता। जिसपर बहुत सख्त कदम उठाने होंगे। इससे देश की गरीब जनता को, जो रोज प्राइवेट स्कूलों की फीस से लेकर कई तरह के मामलों से जूझ रही है उन्हें बहुत फायदा होगा। यही नहीं निम्न और मध्यम वर्गीय परिवार भी जो अपने बच्चे को कम पैसों में उच्च शिक्षा देना चाहती है उसके भी सपनों को पंख लगेगी।
सरकार को नौकरी देने की चिंता छोड़कर सरकारी स्कूलों की पढ़ाई की व्यवस्था को बेहतर करने पर ध्यान देना चाहिए। बच्चों में स्किल का निर्माण कराना चाहिए। ऐसे बच्चे अपने जीवन में कोई न कोई रास्ता निकाल ही लेंगे। लेकिन फिलहाल उन्हें जरूरत है अच्छी शिक्षा की।
ये अपने आप में अजीब बात है कि उच्च शिक्षा के मामले में सरकारी संस्थाएं टॉप पर है लेकिन बेसिक शिक्षा के मामले में सबसे नीचे। जब नींव ही बच्चे की खराब हो तो उसका भविष्य कैसा होगा सभी जानते होंगे, वह बच्चा जिंदगी भर संघर्ष करता रह जाएगा।
यही नहीं सरकार यही भी कर सकती है कि सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों पर बहुत कम रकम तय करके फीस के आधार पर लिया जाए ताकि ऐसे स्कूलों में बेहतर शिक्षा दे सके। हालांकि यहां पर सरकार को इस बात का ध्यान रखना होगा कि किसी भी तरह का बोझ इससे आम जनता पर न पड़े। साथ ही उनके द्वारा दी जा रही छात्रवृति और तमाम योजनाओं को भी जारी रखा जाए।
प्राइवेट स्कूलों में बीपीएल के बच्चों को पढ़ाने का जो प्रावधान है उसे भी अच्छी तरह से इम्प्लीमेंट किया जाए। प्राइवेट स्कूलों में इस तरह की व्यवस्था की जाए जिससे निम्न वर्ग के बच्चे भी शिक्षा ले सके। केंद्र सरकार की इसमें बड़ी भूमिका होगी क्योंकि ये उन्हीं सरकारी स्कूलों के हाल हैं जो राज्यस्तरीय है। केंद्रीय स्कूलों की स्थिति फिर भी ठीक है। इसलिए केंद्र सरकार पर राज्य सरकार को दबाब बना होगा।
आप खुद देखते होंगे कि किस तरह आईआईटी,आईआईएम या आईआईएमसी का नाम लेते ही उस छात्र की अहमियत बाकियों की तुलना में बढ़ जाती है जबकि प्राइवेट संस्थाएं यहां पर मार खा जाती है। पर बेसिक शिक्षा के मामले में सरकारी स्कूल के बच्चे मार खा जाते है तो वहीं प्राइवेट स्कूल के बच्चे बाजी मार जाते हैं। यहां पर बहुत जरूरी हो गया है कि कम से कम पढ़ाई के क्षेत्र में मौजूद इस खाई को खत्म किया जाए।
दोनों ही सरकारी संस्था होने के बावजूद शिक्षा व्यवस्था में इतना अतंर क्यों? क्या उच्च शिक्षण संस्थानों की तरह बेसिक शिक्षण संस्थानों में शिक्षा दे पाना कठिन है? क्या बेसिक शिक्षा व्यवस्था को भी उच्च शिक्षा की तरह नहीं बनाया जा सकता?
उच्च शिक्षा के लिए छात्रों की संख्या सीमित है वहीं बेसिक शिक्षा के लिए ज्यादा। फिर भी शिक्षा में इतने बड़े अंतर को क्या कम नहीं किया सकता? किया जा सकता है लेकिन उसके लिए सबसे पहला काम है नियमित दूरी पर स्कूलों को होना। इसके बाद शिक्षकों की बहाली में पारदर्शिता लाना। आज भी देश में कहीं-कहीं सरकारी स्कूलों की दूरी बहुत ज्यादा है। स्कूलों में बच्चों और शिक्षकों का ठीक ठाक अनुपात हो, जिससे पढ़ाई की व्यवस्था बेहतर हो।
क्या सरकारी स्कूलों में एडमिशन के लिए भी सरकार सिमतुल्ला, नवोदय या सैनिक स्कूलों जैसी व्यवस्था नहीं कर सकती है? जिससे बेसिक शिक्षा के दौरान ही बच्चों के बीच एक अच्छी प्रतिस्पर्धा देखने को मिले और शिक्षा का बेहतर माहौल बने।
ऐसा नहीं है कि सरकर पैसे खर्च नहीं करती। बहुत करती है। लेकिन पैसे का सही से इस्तेमाल नहीं हो पाता। जिसपर बहुत सख्त कदम उठाने होंगे। इससे देश की गरीब जनता को, जो रोज प्राइवेट स्कूलों की फीस से लेकर कई तरह के मामलों से जूझ रही है उन्हें बहुत फायदा होगा। यही नहीं निम्न और मध्यम वर्गीय परिवार भी जो अपने बच्चे को कम पैसों में उच्च शिक्षा देना चाहती है उसके भी सपनों को पंख लगेगी।
सरकार को नौकरी देने की चिंता छोड़कर सरकारी स्कूलों की पढ़ाई की व्यवस्था को बेहतर करने पर ध्यान देना चाहिए। बच्चों में स्किल का निर्माण कराना चाहिए। ऐसे बच्चे अपने जीवन में कोई न कोई रास्ता निकाल ही लेंगे। लेकिन फिलहाल उन्हें जरूरत है अच्छी शिक्षा की।
ये अपने आप में अजीब बात है कि उच्च शिक्षा के मामले में सरकारी संस्थाएं टॉप पर है लेकिन बेसिक शिक्षा के मामले में सबसे नीचे। जब नींव ही बच्चे की खराब हो तो उसका भविष्य कैसा होगा सभी जानते होंगे, वह बच्चा जिंदगी भर संघर्ष करता रह जाएगा।
यही नहीं सरकार यही भी कर सकती है कि सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों पर बहुत कम रकम तय करके फीस के आधार पर लिया जाए ताकि ऐसे स्कूलों में बेहतर शिक्षा दे सके। हालांकि यहां पर सरकार को इस बात का ध्यान रखना होगा कि किसी भी तरह का बोझ इससे आम जनता पर न पड़े। साथ ही उनके द्वारा दी जा रही छात्रवृति और तमाम योजनाओं को भी जारी रखा जाए।
प्राइवेट स्कूलों में बीपीएल के बच्चों को पढ़ाने का जो प्रावधान है उसे भी अच्छी तरह से इम्प्लीमेंट किया जाए। प्राइवेट स्कूलों में इस तरह की व्यवस्था की जाए जिससे निम्न वर्ग के बच्चे भी शिक्षा ले सके। केंद्र सरकार की इसमें बड़ी भूमिका होगी क्योंकि ये उन्हीं सरकारी स्कूलों के हाल हैं जो राज्यस्तरीय है। केंद्रीय स्कूलों की स्थिति फिर भी ठीक है। इसलिए केंद्र सरकार पर राज्य सरकार को दबाब बना होगा।
आप खुद देखते होंगे कि किस तरह आईआईटी,आईआईएम या आईआईएमसी का नाम लेते ही उस छात्र की अहमियत बाकियों की तुलना में बढ़ जाती है जबकि प्राइवेट संस्थाएं यहां पर मार खा जाती है। पर बेसिक शिक्षा के मामले में सरकारी स्कूल के बच्चे मार खा जाते है तो वहीं प्राइवेट स्कूल के बच्चे बाजी मार जाते हैं। यहां पर बहुत जरूरी हो गया है कि कम से कम पढ़ाई के क्षेत्र में मौजूद इस खाई को खत्म किया जाए।

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