जम्मू कश्मीर में हिजबुल मुजाहिदीन के आतंकवादी बुरहान वानी की सेना से हुई मुठभेड़ में
मौत के बाद उसके जनाजे में शामिल हुई भारी भीड़ और फिर हिंसा होना, आने वाले दिनों में
कश्मीर के लिए शुभ संकेत नहीं कहे जा सकते हैं.
हालांकि पिछले कुछ वर्षों में यह पहली बार नहीं था कि किसी आतंकी या चरमपंथी के जनाजे में भारी भीड़ शामिल हुई हो. इस तरह के मामले सामने आते रहते हैं. कभी पाकिस्तानी झंडा फहराना, कभी पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाना, ये सब नियमित अंतराल पर देखने को मिलते रहते हैं लेकिन इस बार हुई हिंसा ने एक गंभीर प्रश्न खड़ा किया है. मुख्य प्रश्न यह है कि क्या कश्मीर फिर से 90 के दशक की तरफ लौट रहा है ? क्या वहां की स्थिति फिर से बिगड़ने लगे हैं? क्या हालात दिन प्रतिदिन बदतर होते जा रहे हैं? अगर ऐसा है तो सरकार क्या कर रही है ? वे इन सब स्थितियों को संभालने के लिए कौन से कदम उठा रही है ? इन चुनौतियों से निपटने के लिए कोई प्लान तैयार किया गया है ? आए दिन इस तरह की घटनाएं बढ़ती जा रही है, इसके सामाधान के लिए क्या किया जा रहा है ?
इन बातों पर नजर दौड़ाई जाए तो लगता है, न कोई ठोस कदम उठाए गए हैं नहीं आगे की कोई सोच दिख रही है. अभी तक हिंसा में लगभग 50 प्रदर्शनकारियों की मौत हुई है. साथ-ही-साथ 2000 के करीब घायल हैं, जिसमें सेना के जवान भी शामिल हैं. सैकड़ों लोगों के आंख की रोशनी जाने के कगार पर है. पिछले 10 दिनों से देखा जाए तो इसका बेहतर हल निकालने के लिए कोई ठोस कदम उठाए गए हैं, ऐसा नहीं दिख रहा है.
लेकिन इन सब के बीच पाकिस्तान ने अपना खेल खेलना शुरू कर दिया है. पाक के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ इस मुद्दे को यूएन से उठाने लगे, कश्मीरियों का हमदर्द बनने की कोशिश करने लगे, वहीं हाफिज सईद भड़काने के प्रयास मे जुट गया, कभी काला दिवस मनाया जाने लगा तो कभी रैलियां निकलने लगी.
कश्मीर को लेकर अगर पाकिस्तान के नजरिये को परखने की कोशिश की जाए तो कई बातें निकल कर सामने आएंगी. पाकिस्तान को ये अच्छी तरह मालूम है कि उसकी जो नापाक कोशिशें कश्मीर के लिए हो रही है, उसमें वह प्रत्यक्ष रूप से कभी सफल नहीं हो सकता है इसलिए वह लगातार कभी बार्डर से सेनाओं द्वारा तो कभी आतंकियों को भेजकर कश्मीर को अस्थिर करने का प्रयास करती रहती है. वह हर ऐसे काम को करने की कोशिश करता है, जिससे कश्मीर के लोगों मे भारत के प्रति नफरत का भाव पैदा हो. वह अप्रत्यक्ष रूप से हमारे लोगों को ही मोहरा बना कर हमारे खिलाफ खड़ा करता है और अपने नापाक मंसुबों को कामयाब करने का प्रयास करता है. उसे मालूम है कि वह कश्मीर को कभी हासिल नहीं कर सकता इसलिए जनमत और आजादी की बात करता है जो खोखला है, इसके जरिये वह अपना हित देखता है. उसे कश्मीरियों से मतलब नहीं है कश्मीर से मतलब है और ऐसे कामों में उसके विचारधारा के कुछ अलगाववादियों का साथ मिल रहा है जिसके जरिये कश्मीर के नौजवानों को भटकाने का कोशिश किया जाता है.
पाकिस्तान की एक चाल इसमें और साफ दिखती है कि कश्मीर के लिए लड़ाई कम भारत की बर्बादी के लिए ज्यादा लड़ रहा है. इसके जरिये वह भारत को कमजोर करना चाहता है लेकिन यह उसकी भुल है जिसका परिणाम आए दिन पाकिस्तान में ही देखने को मिलता है. जम्मू कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है और रहेगा. बस जरुरत है कि हमें अपने गुस्से और प्रतिक्रिया को कश्मीर के लोगों पर न उतार कर सबसे पहले पाकिस्तान के नापाक मंसुबों को ध्वस्त करने के लिए एक योजना बनाने पर हो. पहले कश्मीर के लोगों को हमें विश्वास में लेकर उनसे बात करनी होगी, समस्याओं के समाधान लिए उनको सुनना बहुत जरुरी है. अलगाववादियों से भी हमें खुलकर बात करनी होगी आखिर उनकी परेशानी क्या है ? वह चाहते क्या हैं? वहां के युवाओं को मुख्य धारा में लाने की ज्यादा जरुरत है. एक स्वच्छ वातावरण में उनसे बात करने की जरुरत है, अगर ये समस्याएं कश्मीर को मिले विशेष अधिकार के बाद भी आ रही है तो वहां के सरकार के कमियों को भी उजागर करती है.
पाकिस्तान, कश्मीर की रुह कश्मीरी पंडितों को वहां से पलायन करा कर , आतंकवादियों को भेज कर , अलगाववाद का बीज बो कर, अपने नापाक कोशिशों में लगा रहा है फिर से ऐसा न हो इसके लिए हमें इनके और कश्मीर के उनलोगों के जो पाकिस्तानी विचारधारा से मेल रखते हैं, उनके सभी नापाक मंसुबों को ध्वस्त करना होगा.
हालांकि पिछले कुछ वर्षों में यह पहली बार नहीं था कि किसी आतंकी या चरमपंथी के जनाजे में भारी भीड़ शामिल हुई हो. इस तरह के मामले सामने आते रहते हैं. कभी पाकिस्तानी झंडा फहराना, कभी पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाना, ये सब नियमित अंतराल पर देखने को मिलते रहते हैं लेकिन इस बार हुई हिंसा ने एक गंभीर प्रश्न खड़ा किया है. मुख्य प्रश्न यह है कि क्या कश्मीर फिर से 90 के दशक की तरफ लौट रहा है ? क्या वहां की स्थिति फिर से बिगड़ने लगे हैं? क्या हालात दिन प्रतिदिन बदतर होते जा रहे हैं? अगर ऐसा है तो सरकार क्या कर रही है ? वे इन सब स्थितियों को संभालने के लिए कौन से कदम उठा रही है ? इन चुनौतियों से निपटने के लिए कोई प्लान तैयार किया गया है ? आए दिन इस तरह की घटनाएं बढ़ती जा रही है, इसके सामाधान के लिए क्या किया जा रहा है ?
इन बातों पर नजर दौड़ाई जाए तो लगता है, न कोई ठोस कदम उठाए गए हैं नहीं आगे की कोई सोच दिख रही है. अभी तक हिंसा में लगभग 50 प्रदर्शनकारियों की मौत हुई है. साथ-ही-साथ 2000 के करीब घायल हैं, जिसमें सेना के जवान भी शामिल हैं. सैकड़ों लोगों के आंख की रोशनी जाने के कगार पर है. पिछले 10 दिनों से देखा जाए तो इसका बेहतर हल निकालने के लिए कोई ठोस कदम उठाए गए हैं, ऐसा नहीं दिख रहा है.
लेकिन इन सब के बीच पाकिस्तान ने अपना खेल खेलना शुरू कर दिया है. पाक के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ इस मुद्दे को यूएन से उठाने लगे, कश्मीरियों का हमदर्द बनने की कोशिश करने लगे, वहीं हाफिज सईद भड़काने के प्रयास मे जुट गया, कभी काला दिवस मनाया जाने लगा तो कभी रैलियां निकलने लगी.
कश्मीर को लेकर अगर पाकिस्तान के नजरिये को परखने की कोशिश की जाए तो कई बातें निकल कर सामने आएंगी. पाकिस्तान को ये अच्छी तरह मालूम है कि उसकी जो नापाक कोशिशें कश्मीर के लिए हो रही है, उसमें वह प्रत्यक्ष रूप से कभी सफल नहीं हो सकता है इसलिए वह लगातार कभी बार्डर से सेनाओं द्वारा तो कभी आतंकियों को भेजकर कश्मीर को अस्थिर करने का प्रयास करती रहती है. वह हर ऐसे काम को करने की कोशिश करता है, जिससे कश्मीर के लोगों मे भारत के प्रति नफरत का भाव पैदा हो. वह अप्रत्यक्ष रूप से हमारे लोगों को ही मोहरा बना कर हमारे खिलाफ खड़ा करता है और अपने नापाक मंसुबों को कामयाब करने का प्रयास करता है. उसे मालूम है कि वह कश्मीर को कभी हासिल नहीं कर सकता इसलिए जनमत और आजादी की बात करता है जो खोखला है, इसके जरिये वह अपना हित देखता है. उसे कश्मीरियों से मतलब नहीं है कश्मीर से मतलब है और ऐसे कामों में उसके विचारधारा के कुछ अलगाववादियों का साथ मिल रहा है जिसके जरिये कश्मीर के नौजवानों को भटकाने का कोशिश किया जाता है.
पाकिस्तान की एक चाल इसमें और साफ दिखती है कि कश्मीर के लिए लड़ाई कम भारत की बर्बादी के लिए ज्यादा लड़ रहा है. इसके जरिये वह भारत को कमजोर करना चाहता है लेकिन यह उसकी भुल है जिसका परिणाम आए दिन पाकिस्तान में ही देखने को मिलता है. जम्मू कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है और रहेगा. बस जरुरत है कि हमें अपने गुस्से और प्रतिक्रिया को कश्मीर के लोगों पर न उतार कर सबसे पहले पाकिस्तान के नापाक मंसुबों को ध्वस्त करने के लिए एक योजना बनाने पर हो. पहले कश्मीर के लोगों को हमें विश्वास में लेकर उनसे बात करनी होगी, समस्याओं के समाधान लिए उनको सुनना बहुत जरुरी है. अलगाववादियों से भी हमें खुलकर बात करनी होगी आखिर उनकी परेशानी क्या है ? वह चाहते क्या हैं? वहां के युवाओं को मुख्य धारा में लाने की ज्यादा जरुरत है. एक स्वच्छ वातावरण में उनसे बात करने की जरुरत है, अगर ये समस्याएं कश्मीर को मिले विशेष अधिकार के बाद भी आ रही है तो वहां के सरकार के कमियों को भी उजागर करती है.
पाकिस्तान, कश्मीर की रुह कश्मीरी पंडितों को वहां से पलायन करा कर , आतंकवादियों को भेज कर , अलगाववाद का बीज बो कर, अपने नापाक कोशिशों में लगा रहा है फिर से ऐसा न हो इसके लिए हमें इनके और कश्मीर के उनलोगों के जो पाकिस्तानी विचारधारा से मेल रखते हैं, उनके सभी नापाक मंसुबों को ध्वस्त करना होगा.

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