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टॉपर्स घोटालाः बिहार हुआ बदनाम


पत्रकार- आपके  कौन-कौन से विषय हैं?
टॉपर छात्रा- हिन्दीइंग्लिश,जियोग्राफीम्यूजिकप्रोडिकल साइंस
पत्रकार- प्रोडिकल साइंसये क्या होता हैइसमें क्या पढ़ाया जाता है?
टॉपर छात्रा- खाना बनाना!

बिहार विद्यालय परीक्षा समिति द्वारा जारी किए गए इंटर परिणाम के कुछ दिन बाद जब एक वीडियो वायरल हुआ, जिसमें इंटर आर्टस की टॉपर रूबी राय पत्रकार के सवालों का जवाब देते समय काफी असमंजस्य में दिखाई दे रही थी, जब पत्रकार ने उसके विषय के बारे में जानना चाहा तो पॉलिटिकल साइंस को प्रोडिकल साइंस बता गईसके बाद पत्रकार ने रूबी से पूछा कि इसमें क्या पढ़ाया जाता है तो उसके चेहरे से टॉपर होने का नूर-बेनूर होने लगा, कभी अपने माता-पिता की तरफ देख रही थीकभी खुद में ही उस सवाल का जवाब ढ़ूँढ़ने की नाकाम कोशिश कर रही थी. उसके बाद पत्रकार ने कई और सवाल किए लेकिन वह खुद को संभालने की कोशिश करती रही और सवालों के जवाब से बिहार की शिक्षा में व्यापत भ्रष्टाचार की पोल खोलती रही.

मामला यहीं नहीं रूकारूबी की तरह इंटर साइंस विषय से टॉप करने वाले वाले सौरभ श्रेष्ठ के पास जब पत्रकार पहुंचा और जानना चाहा कि उसने किस तरह से तैयारी करके बिहार में टॉप किया है तो रूबी की तरह सौरभ असमंजस्य में तो नहीं दिखा पर पत्रकार ने जैसे ही विषय से संबंधित प्रश्न किए, सौरभ की दिन में तारे दिखने जैसी स्थिति होने लगी. इन दोनों टॉपर के इस वीडियों ने पुरे भारत में एक बहस छेड़ दी कि क्या बिहार की शिक्षा व्यवस्था इतनी लचर हैशिक्षा के क्षेत्र में इतना खामियां मौजूद है ? इस कारण वह छात्र टॉपर बन जा रहा है जिसे अच्छे से विषय के बारे में जानकारी नहीं हैक्या बिहार में शिक्षा के क्षेत्र में भ्रष्टाचार चरम पर हैआइये इसके आधारभुत पहलुओं को समझने की कोशिश करते है.
                 
बिहार में शिक्षा के जमीनी स्तर पर बात किया जाए तो स्थिति चिंताजनक दिखाई पड़ती है. प्राथमिक शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक में ऐसे कई पहलु है जिसपर कार्य करने की आवश्यकता हैशिक्षक छात्र का अनुपात होशिक्षक बहाली में पारदर्शिता की बात हो या योग्यतापूर्ण शिक्षकों का मासला हो आदि विभिन्न पक्ष है जिस पर ईमानदारी से कार्य करने की जरूरत है. जब शिक्षकों की बहाली हुई तो उसमें हुए घोटालें किसी से छिपे नहीं हैं. इस कारण बिना किसी योग्यता वाले भी भ्रष्टाचार के तहत शिक्षक बन गएइसका परिणाम ये हुआ कि योग्यतापूर्ण लोगों को मौका नहीं मिला. वें शिक्षक तो बन गए लेकिन शिक्षा से कोई जुड़ाव नहीं होता, यह भी कहा जा सकता है कि जो अपने आप में ईमानदार नहीं है, वह शिक्षा और बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए क्या ईमानदार होंगा.यह एक बड़ा सवाल है. सरकार द्वारा अभिभावकों और बच्चों को प्रोत्साहित करने के लिए कार्यक्रम चलाई जा रही है जिससे लोगों में शिक्षा प्राप्त करने की जागरूकता आए लेकिन यह तभी सफल होगा जब शिक्षा व्यवस्था मे व्याप्त भ्रष्टाचार को दूर किया जाएगाइसके लिए सिर्फ सरकार बदलाव ला देगी, ये उम्मीद बहुत कम है.बिहार की शिक्षा को पटरी पर लाने के लिए अभिभावकों, छात्रों, शिक्षकों, पदाधिकारियों और ऊंचे पदों पर बैठे लोगों को आगे आकर इसके खिलाफ जंग छेड़नी होगी.
         
बिहार टॉपर्स घोटाले को ही देखिए तो साफ दिखता है कि इसमें इन सभी ने मिलकर प्रतिभावान बच्चों का हक मारने की कोशिश की, जो असल में टॉप करने के हकदार थे, जो पहचान के हकदार थे वो गुमनाम रहें. ये सोचने वाली बात है. हालांकि सरकार ने तुरंत इस घोटालें में शामिल लोगों पर कार्रवाई तो की है लेकिन इसे और व्यापक स्तर पर एक मुहिम छेड़ना होगा.

शिक्षण संस्थानों पर बात की जाए तो ऐसे तमाम संस्थान चल रहे हैं जो शिक्षा औऱ बच्चों के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं, कक्षाएं नहीं चलती , मोटी फीस सिर्फ इस आश्वासन पर ली जाती है कि रिजल्ट अच्छा आएगा, मनपसंद परीक्षा सेंटर भी इनकों दिया जाता है. ऐसे शिक्षण संस्थानों की मान्यता रद्द करने की जरूरत है. आप खुद सोचिये बच्चों का भविष्य कहां जा रहा हैयहां पर अभिभावकों को रोल महत्वपूर्ण है. प्राथमिक शिक्षा में देखे तो ये बच्चों की कक्षा में उपस्थिति और क्या पढ़ाया जा रहा है इसे देखने नहीं जाते लेकिन जब छात्रवृति का बंटवारा हो तो पूछने पहुंच जाते है कि मेरे बच्चें को क्यों नहीं मिला? उसी तरह इन टॉपरों के अभिभावकों पर ध्यान दें तो इस पूरे प्रकरण में उनका भी अहम रोल है. बच्चों को शिक्षा देना चाहते थे या भ्रष्टाचारी बनाना. शिक्षकों ने तो स्कूलों को राजनीतिक अड्डों मे तब्दील करना शुरु कर दिया है, उन्हें बच्चों के भविष्य से क्या मतलब. अंत इन सभी समस्याओं कर ध्यान देने की जरूरत है।

एक तरफ जहां सुपर-30 जैसे कोचिंग संस्थान से बच्चे आईआईटी के लिए क्वालीफाई करके बिहार की शिक्षा की एक अलग तस्वीर पेश करते हैं, दूसरी ओर इस तरह के लोग हैं जो शिक्षा के साथ-साथ बिहार को बदनाम करते है. इसलिए ये जरूरी है कि कोई ठोस कार्रवाई की जाए ताकि बिहार में शिक्षा को एक नई पहचान मिले.

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