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भागवत जी, लोगों के विकास के लिए प्रेरक बनिए रोधक नहीं



मोहन भागवत द्वारा ज्यादा बच्चे पैदा की अपील पर उनको मेरा खत.
मोहन भागवत जी, नमस्कार.
भागवत जी, बात शुरू करने से पहले बता दूँ, मैं न आपका फैन हूँ न फॉलोअर. इसलिए ये पत्र लिख रहा हूँ, यह जानते हुए की पत्र आप तक नहीँ पहुंच पाएगा जिसका दुख मुझे हमेशा रहेगा.
अब बात शुरू करते हैं. मुझे नहीं लगता आप समाज (मेरी नज़र में समाज) यानि अपने हिंदू भाइयों के शुभचिंतक हैं. सर क्यों आप अच्छे अौर समझदार लोगों को ज्यादा बच्चे पैदा करने के लिए भड़का रहे हैं ? इससे आप का क्या फायदा है ? मुझे जहाँ तक लगता है, एक आप अपने फैन और फॉलोअर की संख्या बढाना चाहते हैंदूसरा आप मुसलमानों के बढ़ती आबादी से चिंतित है अौर तीसरा हिंदू धर्म को बढ़ाना तथा बचाना चाहते हैं.
भागवत जी, मुसलमानों की बढ़ती आबादी को हिन्दूओं से ज्यादा बच्चे पैदा करा कर कंट्रोल करना चाहते हैं या मुकाबले के लिए तैयार. यहाँ पर एक सवाल उठता है, आप केवल मुसलमानों की बढ़ती आबादी को कंट्रोल करना चाहते हैं या फिर उनके बढ़ते टायर, पंचर, सैलून, टेलर, पार्चून की दुकानों, जड़ी के कारखानों, हकीम के दवाखानों से लेकर बाबाओं के सफाखानों को भी काबू करना चाहते हैं.
इन बातों को छोड़िये, आपने हाल फिलहाल एक रिपोर्ट पढ़ी होगी कि भारत मे हर चौथा भिखारी मुसलमान है, फ़िर आप ही समझाइए आप ऐसा चाहते हैं , वह भी जाने दीजिए, आप उन हिंदू परिवारों का पता लगवाइये जिनके ज्यादा बच्चे हैं, उनकी शिक्षा स्वास्थ आर्थिक से लेकर समाजिक स्थिति क्या है?
ओह! अब समझ आया आबादी बढ़ेगी तो इसपर भी कंट्रोल हो जाएगा, जनसँख्या में ही तो रोजगार छिपा है तो इस तरह मुसलमानों के लिए एक और बुरी ख़बर! मुसलमानों ! अब तुम्हारे कामों मे प्रतियोगिता होने वाली है .प्रतियोगी को लाने मे जुटे हैं भागवत जी.
भागवत जी, आप क्यों प्रगतिशील लोगों के बीच प्रेरक बनने की कोशिश करते हुए रोधक बन रहे हैं, क्यों उन्नति पर अपनी खुन्न्सी पकड़ाना चाहते हैंक्यों एक घर को टीम बनवाना चाहते हैं? पिंटू-चिंटू टीम आदि आदि. मुसलमानों के हालात आपके सामने है, आप इतने ही अपने समाज के हमदर्द है तो उनको इन परेशानियों भरी राहों पर क्यों चलाना चाहते हैंचलिए मान लेते हैं आपके दृष्टिकोण में मुस्लिम नहीं भी हैं तो ज्यादा बच्चे पैदा करना, किस समस्या का समाधान है, आप ही बता दीजिये.
इसके अलावा एक बात औैर बच्चा पैदा करने में औरतों के दर्द को आप नहीं समझेंगे इसलिए आप A T M मशीन समझ रहे हैं कि कार्ड लगाया और पैसा निकाला. ये बात अपने आप में आपत्तिजनक हैमैं मानता हूँ की आप जो करते हैं, वह बहुत त्याग वाला कार्य है पर समस्यायों के साथ जीना उससे भी बड़ा परित्याग है.
इस तरह ही हमारे मुल्लों ने प्रेरक की भूमिका बहुत निभाई, खूब प्रचार किया, मुसलमानों ज्यादा से ज्यादा बच्चे पैदा करो इस्लाम बढ़ेगा, अल्लाह खुश होगा , रोज़ी रोटी देने वाला अल्लाह है. मुसलमानों ने प्रेरणा पाकर पैदा करना शुरू कर दिया. ज्यादा बच्चे पैदा करने से धर्म नहीं बढ़ता, उसके अच्छे संदेशों से बढ़ता है, जिसके लिए एक आदमी ही काफी है, जैसे इस्लाम के लिए हज़रत मोहम्मद वैसे ही आपमें महादेव जी.
सर बच्चों को किन बूनयादी चीजों की ज़रूरत होती है आप भी जानते हैं, अच्छी परवरिश से लेकर पढ़ाई लिखाई तक. आप खुद सोचिए आज के इतने मंहगाई वाले दौर में एक आदमी ज्यादा बच्चों की अच्छी परवरिश के साथ शिक्षा कैसे दे पाएगा. ये तो छोड़िये बच्चों के अच्छे स्वास्थ के लिए पड़ने वाले 11 ज़रूरी टीकों BCG से लेकर Do3 तक का टीका भी नहीं दिला पाएगा.
हाँ पोलियो का दो बूँद डलवा सकता है जो ज़बान में लटपटा के रह जाता है ओ भी इसलिए क्योंकि सरकार द्वारा फ्री में पिलावाया जाता हैइसको भी छोड़ दें तो एक आदमी ज्यादा बच्चों के लिए खाना-पीना, कपड़ा-लत्ता, मरण -हरण, पर्व -त्योहार सब का इंतजाम कैसे करेगा? इसका उपाय आपने नहीं बताया. अगर इसका उपाय बता दें तो मुझे पक्का यकीन है कि लोग ज्यादा बच्चा पैदा करेंगे. एक बार्डर पर देंगे, एक अपने पास रखेंगे, एक साधु बनाएंगे और एक आप के पास भेज देंगे.
लेकिन अफसोस आपकी योजना असर नहीं छोड़ पाएगा, क्योंकि घर आपके जुबानों से नही पैसों से चलता है. इसलिए ये दर्द हमलोग अच्छी तरह समझ रहे हैं और इसका निवारण करने में लगे है और आप सब के लिए अकारण ही समस्याएं उत्पन्न कराने में लगे है. आपने एक बात और कहीं महिलाओं को चूल्हे चौके करने चाहिए. आप पुरुषों पर क्यों नहीं बोलते जो महिलाओं को चूल्हे चौके जैसा बर्ताव करते हैं, महिलाएँ अपने दर्द को कलम से कागज पर उतारती है और सुबह फाड़ कर चूल्हे में जला देती है. भगवान आपकी नज़र इधर भी कराए ये आशा करता हूँ. इसपर बाद में और तफसील से लिखूंगा. 
फिलहाल इतना ही, इसी बात के साथ अपनी बात ख़त्म करता हूँ और मुझे नहीं लगता आपकी माँग का कोई सम्मान रखेगा इसलिए आपको जो अच्छा लगे उसका स्वाद लीजिए बस लोगों का स्वाद बे स्वाद मत कीजिए.

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