हाल
ही में एक फिल्म आई जिसका नाम था- संजू। संजय
दत्त की बायोपिक संजू में रणबीर कपूर कहते हैं कि वह 350 महिलाओं के साथ सो चुके हैं. जैसे ही ये फिल्म आई रणबीर से भी पूछ लिया
गया कि उनकी कितनी गर्लफ्रेंड रहीं. रणबीर ने कहा, 'मेरी 10 से कम गर्लफ्रेंड रही हैं. मुझे प्यार करना पसंद है, लेकिन
मैं रोमांटिक हूं, ठरकी नहीं.'
इसके अलावा भी आपने कई ऐसे इंटरव्यू देखे होंगे जिसमें किसी कलाकार या क्रिकेटर से ये सवाल
किए गए होंगे लेकिन क्या आपने एक भी ऐसा इंटरव्यू देखा है जिसमें महिला कलाकार या
क्रिकेटर से ये सवाल पूछा गया हो कि आपके पास कितने बॉय फ्रेंड हैं या फिर किसी
फिल्म में ही किसी अभिनेत्री को ये कहते सुना है कि वो इतनों के साथ सो चुकी है।
इस सवाल के पीछे कोई सोच भी होती है, मुझे लगता है कोई एजेंडे वाली सोच नहीं होती लेकिन मानसिकता होती है।
क्योंकि जो भी ये सवाल कर रहा हो या कर रही हो, उसके दिमाग
के अंदर महिलाओं की संरचना होती है।
अगर नहीं होती तो ये सवाल नहीं किए जाते अगर किए जाते तो दोनों से।
क्योंकि ये बात भी थोड़ी अजीब है कि जिस महिला कलाकार के हर अफेयर के बारे में
दुनिया जानता है फिर उससे पूछने में किस तरह का संकोच?
सवाल ये भी है कि क्या कोई लड़की उतनी ही आज़ादी से घर जा सकती है
जितनी आज़ादी से इस सवाल का जवाब देकर लड़का जाता है। जब स्टारों से इस तरह के सवाल
पूछे जाने से बचा जाता हो तो आप आम लड़कियों की बात को आसानी से समझ सकते हैं।
हालाँकि इनके घर में खुलापन भरपूर होता है फिर भी ऐसे सवालों को पूछने से बचा जाता
हैं।
क्या इसलिए महिलाओं
से ये सवाल नहीं किए जाते कि समाज अभी भी किसी
महिला के मुंह से ये सुनने के लिए तैयार नहीं है कि उसके बॉय फ्रेंड हैं। गांव देहात में तो अभी भी किसी
लड़की से बात करना चक्कर चलना माना जाता है। वहीं इसी पैटर्न को मेट्रो सिटी में
दोस्त मान लिया जाता है। बहुत से लड़के अपनी बहन के सामने ही उसके कितने
गर्लफ्रेन्ड्स हैं, बता देता है लेकिन क्या लड़की ये बात
अपने भाई को बता सकती है?
क्या इसके पीछे ये बात होती
होगी की अगर बता दिया तो घर वाले किस
नज़र से देखेंगे, कोई लड़की जल्दी शादी के लिए हां नहीं बोलेगा। अगर
ऐसा है तो यहाँ पर लड़कियों की भी गलती है फिर आप क्यों जाते हैं किसी सेकेंड हैंड जवानी की तरफ। अपने कभी देखा है पटाने के लिए किसी लड़की को लड़का का पीछा करते। बिलकुल भी
नहीं देखा होगा। अगर कोई लड़का किसी लड़की का पीछा कर रहा हो तो भी लड़की को ही
गलत नजरों से देखा जाता है।
यही नहीं बॉलीवुड को देखा जाए तो हीरो भले 50 साल
का हो लेकिन हिरोइन उसे 25 साल
की कमसिन ही चाहिए। इसमें हो सकता है कि दर्शकों को आकर्षित करने के लिए किया जाता
हो लेकिन आप जो दिखा रहे हैं लोग वही देखेंगे न। इससे हट कर कुछ लोग पहले वाली बात
को अप्लाई कर रहे हैं तो कहीं न कहीं बीमारी है।
आप देख सकते हैं कि किसी भी खेल में महिलाओं की
टीम होती है तो उस टीम का नाम में महिला जोड़ दिया जाता है क्यों? पुरुषों
की टीम में क्यों नहीं जोड़ा जाता?
इस दिशा में ऑस्ट्रेलिया की टीम ने अच्छा काम किया है और उन्होंने अपने पुरुष टीम का
नाम Australia men's cricket team कर दिया है जो
एक सकारात्मक पहल कही जा सकती है। यहाँ पर एक बात और
देखने को मिलती है, वैसे तो महिलाओं को लेकर बड़ी दिलचस्पी
होती है पुरुषों में पर एक टीम और एक स्टार के तौर पर देखेंगे तो उसके हीरो हमेशा
पुरुष प्राणी ही होते हैं, जिसका अंदाज़ा आप किसी पुरुष टीम
के मैच और महिला टीम के मैच की उत्सुकता को लेकर देख सकते है।
जिस दिन इन सब मामलों में परिवर्तन आना शुरू हो जाएगा, उसी दिन से न जाने कितनी लड़कियां उससे प्रेरित होगी और आने वाली पीढ़ी के
लिए फायदे की बात होगी? इसका
अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि जब किसी की भी संख्या कम होती है तो उसपर जुल्म करना आसान
हो जाता है लेकिन उसके बराबरी का हो या उससे संख्या में ज्यादा हो तो जुल्म करने
वाला भी सोचने पर मजबूर कर हो जाता है इसलिए बेहद जरूरी है कि हर क्षेत्र में
लड़कियां और महिलाएं आगे आएं ताकि उनकी एक अच्छी खासी संख्या बस, मेट्रो
सड़क, स्कूल, कॉलेज
में दिखे, जिससे इस तरह की असमानता को हटाया जा सके। यहां पर
महिलाओं की भी कमी है जब किसी घर में किसी महिला का पति जुल्म करता है तो खुद उस
घर की महिलाएं ही आवाज़ नहीं उठाती जबकि उस तरह का व्यवहार ज्यादातर महिलाएं झेल
चुकी होती हैं। फिर भी न वह अपने दर्द को बयां करती हैं नहीं बचाव करती हैं. इसलिए
जबतक महिलाओं खुद आगे आकर इन सब बातों का सामना नहीं करेगी समाज में तेजी से बदलाव
होना मुश्किल है।

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