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भीड़तंत्र का हिस्सा क्यों बनते जा रहे हैं लोग?



पिछले कुछ सालों में मॉब लिंचिंग की घटनाओं में काफी वृद्धि हुई है जिसपर जमकर राजनीति के साथ हंगामा भी हुआ है। इन मामलों में से बहुत कम में ऐसा हुआ है कि कड़ी सजा मिली हो। कड़ी सजा तो छोड़िए नेता उनको सम्मानित करने लगे हैं। इसको भी छेड़ दिया जाए तो भी अब टिकट मिलने लगी है।
मॉब लिंचिंग के जितने भी मामले आए हैं, उनमें कुछ राजनीतिक विरोध, धार्मिक नफरत, जाति भेदभाव, चोर या लड़की छेड़खानी के मामले हैं। ये सभी समाज के लिए खतरनाक है।
राजनीतिक विरोध में झड़प होना आम बात हैं लेकिन जिस तरह गुट बनाकर इस किया जाता है वह किसी भी सभ्य समाज को शोभा नहीं देता। लेकिन सबसे ज्यादा खतरनाक है नफरत में की गई लिंचिंग।
इस तरह के लिंचिंग को देखें कुछ बेहद ही चौंकाने वाली बात सामने आती है। एक अपने धर्म को ऊपर देखने के कारण, खुद को दूसरे से श्रेष्ठ साबित करने के लिए और किसी भी बात के लिए किसी दूसरे को जिम्मेदार मानने के कारण इन घटनाओं को अंजाम दिया जाता है।
ऐसे मामलों में देखा गया है कि समाज अचानक से एकजुट हो जाता है। क्योंकि अगर किसी का जाती मामला हो तो लोग कम एक्टिव होते है पर वही अगर धर्म, जाति की बात आ जाए तो सभी एकजुट हो जाते हैं। ऐसे में अगर किसी शख्स की हत्या हो जाती है तो इसके लिए पूरा समाज जिम्मेदार होता है लेकिन उसके लिए सजा का कोई प्रावधान ही नहीं दिखता। यही कारण है कि लोग किसी भी मामले को इस तरफ मोड़ देते हैं ताकि उसके साथ समाज खड़ा हो जाए, जिससे काम को आसानी से अंजाम दे दिया जाए और बच कर निकल भी जाए। जब बात इसके ऊपर जाती है तो ऐसे लोगों को सहारा नेताओं का मिल जाता है। जिस कारण इनके हौसले और बुलंद हो जातो हैं।
ये बात सब जानते है ये मॉब लिंचिंग में लिप्त लोग किस तरह से समाज को भ्रमित करते हैं। इसको रोकना थोड़ा इसलिए भी मुश्किल होता है कि कहीं न कहीं इस तरह के मामलों में एक जनसमूह काम करता है।
हमें देखने में ये भी मिला है कि बच्चा चोर के नाम पर तो कभी किसी अन्य कारण से भी मॉब लिंचिंग की घटनाएं हुई हैं। यहाँ एक बड़ा सवाल ये है क्या लोगों का कानून पर से विश्वास खत्म हो गया है, जिस कारण तुरंत आवेश में
आकर किसी की हत्या कर देते हैं।
क्या सिस्टम की नाकामी कारण ऐसे तत्वों को बल मिल रहा है? क्या लोगों में इस विश्वास की कमी है कि कानून इसे जल्दी सजा देगी या फिर तारीख पर तारीख मिलेगी?
क्रिमिनल या क्राइम पर पुलिस का कंट्रोल नहीं होना भी एक बहुत बड़ा कारण है क्योंकि जब किसी आरोपी को नहबीं पकड़ा जाता किसी घटना का कोई निष्कर्ष नहीं निकलता तो लोग कानून हाथ में लेकर खुद ही फैसला करने नकल जाता है। इसलिए उसे कानून प्रक्रिया में विश्वास नहीं होता और वहीं पर इसका इसांफ करने लगता है जिस कारण बेकसूर को भी अपनी जान गंवानी पड़ती है।ये जो अफवाहों पर कत्ल का सिलसिला शुरू हुआ है, इसमें कहीं न कहीं सिस्टम भी दोषी है। इसलिए बेहद जरूरी है कि ऐसे मामलों को रोकने के लिए पुलिस को और एक्टिव किया जाए और ये सुनिश्चित क्या जाए कि अगर उसके क्षेत्र में इस तरह की कोई भी घटना होती है तो वहां के अधिकारी या उस क्षेत्र के प्रभारी की जिम्मेदारी भी बनती है, उनपर भी कार्रवाई होनी चाहिए। सिस्टम को इस तरह बनाना होगा जिससे लोगों में ये भरोसा बना रहे कि पुलिस तुरंत एक्शन लेगी। उसी तरह न्यायालय की प्रक्रिया में भी तेजी लाने की आवश्यकता है जिससे लोगों में ये विश्वास हो कि यहां से जल्दी इंसाफ मिले। स्थानीय जन प्रतिनिधियों को इस काम में लगाया जाए कि वो समाज को बेहतर दिशा दिखाए न कि खुद उसे प्रोत्साहित करें।

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