स्वतंत्रता दिवस पर झंडा फहराने को लेकर दो तरह के वीडियो सामने आ रहे हैं। एक, जामा मस्जिद में झंडा फहराने को लेकर बहस हो रही है. दूसर, झंडा फहराने के बाद राष्ट्रगान को लेकर. दूसरे वाले वीडियो में जिसमें एक मौलाना बोलते हुए दिख रहे हैं कि ये नहीं होगा। बुनियादी बात ये है कि पहले वाली परिस्थिति दूसरे की वजह से बनी है। क्योंकि भारत के राष्ट्रगान के गाने को लेकर अगर खुलेआम इस तरह इंकार किया जाएगा तो कहीं न कहीं देश को सभी लोगों को प्रभावित करेगा। इससे लोग उस शख्स के साथ-साथ पूरे समाज पर भी शक करने लगता है। इस तरह की स्थिति क्यों बनती है उसपर बहुत ही गहनता से विचार होना चाहिए। अगर मौलाना का ये तर्क है कि इस्लाम में इसकी इजाजत नहीं है तो उनको मालूम होना चाहिए कि इस्लाम में मादरे वतन को लेकर क्या कहा गया है? ये बात साफ-साफ है कि अपने वतन की हिफाजत करना उसका फर्ज है। फिर उन्हें ऐसे क्यों लगता है कि इससे धर्म पर आंच आ जाएगी। जिस देश में रहते हैं उसका जयकारा या गुणगान करने में आखिर किसी को क्या दिक्कत हो सकती है? ऐसा तो नहीं हैं कि वह अपने आप को अभी भी इस देश का दोयम दर्जे का नागरिक ...
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