इन दिनों दिल्ली से लेकर असम तक राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) को लेकर जमकर राजनीति हो रही है. दरअसल असम में NRC में शामिल होने के लिए 3.29 करोड़ लोगों ने आवेदन किया था, लिस्ट में लगभग 40.07 लाख लोगों का नाम नहीं आया. जिसके बाद इसे हिन्दू-मुस्लिम और बांग्ला का मुद्दा बनाया जाने लगा, जो ठीक नहीं है क्योंकि जिनके नाम नहीं आए हैं उनमें सभी शामिल हैं. फिर भी अगर इस लिस्ट में जितने लोगों का नाम नहीं आया है और बीजेपी उसे घुसपैठिया बता रही है तो कुछ ऐसे सवाल हैं जिसका जवाब उन्हें देने चाहिए.
1. जिन बच्चों के नाम आए हैं और उनके माता-पिता का नाम नहीं आया है, वह बच्चा भारतीय हो गया और उसके माता-पिता घुसपैठिए कैसे?
2. एक परिवार में 10 लोग हैं, उनमें से 2 भारतीय मान लिए गए और 8 बांग्लादेशी, किस आधार पर?
3. पति भारतीय लेकिन पत्नी और बच्चे शरणार्थी, ये कैसे हुआ?
4. जिसने असम शासन में 40 साल तक नौकरी की हो वह आज कैसे भगोड़ा हो गया?
5. लिस्ट में भारत के पूर्व राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद के परिवार के लोगों का नाम शामिल नहीं है, क्या वह भारतीय नहीं थे?
6. असम में बिहार-यूपी-बंगाल के लोग बड़ी तादाद में रहते हैं और वहां पर भी नागरिकता रखते हैं और अगर मान लीजिए उनका नाम नहीं आया तो क्या वह भी रिफ्यूजी हुए?
ऐसा बिलकुल भी नहीं है कि असम में अवैध रूप से लोग नहीं रहे हैं लेकिन उसकी तादाद इतनी बड़ी नहीं है या अगर हैं भी तो वह बहुत पहले से रह रहे हैं जिसे सरकार अब भारतीय मानती है.
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने असम में बांग्लादेश से आए घुसपैठियों पर हुए बवाल के बाद एनआरसी अपडेट करने को कहा था. एनआरसी असम का निवासी होने का सर्टिफिकेट है जिसका पहला रजिस्टर 1951 में जारी हुआ था. इस मुद्दे पर असम में कई बड़े और हिंसक आंदोलन हुए हैं. 1947 में बंटवारे के बाद असम के लोगों का पूर्वी पाकिस्तान में आना-जाना जारी रहा। 1979 में असम में घुसपैठियों के खिलाफ ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन ने आंदोलन किया. इसके बाद 1985 को तब की केंद्र में राजीव गांधी सरकार ने असम गण परिषद से समझौता किया. इसके तहत 1971 यानि बांग्लादेश बनने से पहले जो भी बांग्लादेशी असम में घुसे हैं, उन्हें भारत की नागरिकता दी जाएगी.
हालांकि इस पर काम शुरू नहीं हो सका. 2005 में जाकर कांग्रेस सरकार ने इस पर काम शुरू किया। 2015 में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर इसमें तेजी आई. इसके बाद असम में नागरिकों के सत्यापन का काम शुरू हुआ. राज्यभर में एनआरसी केंद्र खोले गए. असम का नागरिक होने के लिए वहां के लोगों को दस्तावेज सौंपने थे.
अब सवाल ये है कि जिनके नाम इसमें नहीं हैं उनका क्या होगा? अभी उनके पास एक और मौका है. छूटे हुए लोग फिर से इसमें शामिल होने के लिए अप्लाई कर सकते हैं. इसके लिए उनके पास 30 अगस्त से 28 सितंबर तक समय है.
लेकिन बिना अंतिम सूची आए ही जमकर राजनीति हो रही है. कुछ लोग सभी को बांग्लादेशी मानने लगे हैं वहीं कुछ इस ड्राफ्ट पर सवाल उठा रहे हैं.
ये मामला इतना पेचीदा होता ही नहीं अगर पिछली सरकारों खासकर कांग्रेस ने इस पर गंभीरता से कार्य किया होता. कांग्रेस मुस्लिम वोट बैंक को साधने के लिए इसमें हाथ लगाने से डरती रही, जिसके कारण विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने इसका जमकर फायदा उठाया और उन्होंने बांग्लादेशियों को वापस भेजने की बात कही.
इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि इस बीमारी की जड़ कांग्रेस है, हमेशा से कांग्रेस की सरकार में बड़े मसले ऐसे होते रहे हैं जिसका कोई ठोस समाधान नहीं निकल पाया. उसी में से एक है बांग्लादेशी घुसपैठ की मामला, और ऐसे मामलों की नस पकड़ने में बीजेपी आगे है. इसी का परिणाम है कि सूची के जारी होते ही जमकर राजनीति हो रही है और बीजेपी सारा क्रेडिट अपने नाम करने की कोशिश कर रही है. यहीं नहां आने वाले 2019 के लोकसभा चुनाव में भी बीजेपी ये दावा करती दिखे कि इतनी सालों में जो नहीं हुआ वह उन्होंने कर दिखाया है, घुसपैठिए की पहचान कर ली है जल्द ही उसे यहां से वापस भेजा जाएगा. इसका फायदा भी बीजेपी को हो सकता है. लेकिन एक बड़ा सवाल यह भी है कि क्या लोकसभा चुनाव तक अंतिम सूची आ जाएगी. देखना होगा कि इस सूची में अभी और कितने लोगों का नाम जोड़ा जाता है और जो बचेंगे उसका घुसपैठिए मानकर वापस बांग्लादेश भेजा जाएगा. क्या बांग्लादेश उससे अपना नागरिक मानने के लिए तैयार होगी? अभी इन सवालों के जवाब भी मिलने बाकी है. फिलहाल इतना ही कहा जा सकता है 40 लाख लोगों को घुसपैठिया करार देकर बीजेपी जल्दबाजी कर रही है क्योंकि जिस तरह राशन कार्ड, एपीएल, बीपीएल और वोटर लिस्टों को बनाने में लापरवाही होती है, कुछ ऐसा ही इस NRC में भी प्रतीत हो रहा है.

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