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ज़ेहन से कैसे निकलेगी अपने शहर (मुजफ्फरपुर) की ये तस्वीर?



मैंने मुजफ्फरपुर शहर में 7 साल, शहर से 15 किलोमीटर की दूरी पर गाँव में 15 साल और दिल्ली में 4 साल की जिन्दगी अभी तक जी है। इतने सालों में मुजफ्फरपुर की घटनाओं पर नजर डाले तो हत्याएं-रेप और बाकी तमाम तरह की घटनाएं होती रही, लेकिन कभी प्रमुख घटना बन कर प्रदेश और देश के सामने नहीं आई।
नवरुणा काण्ड, एक सांप्रदायिक झड़प को अगर छोड़ दें तो किसी भी यहां की ख़बर को ज्यादा तवज्जों नहीं मिली। हाँ ये जरूर है कि स्थानीय अख़बारों में कई घटनाओं या ख़बरों को प्रमुखता के साथ छापी गई। लेकिन 1999 से अख़बार और 2000 से टीवी देखना शुरू किया तो 1 महीने पहले तक ये बात मन को कचोटती थी कि मेरा शहर टीवी में क्यों नहीं आता, मुझे अपने शहर को टीवी पर देखना है, पर आता ही नहीं पता नहीं यहाँ ख़बर ही नहीं है या पहुँचती नहीं।
हालांकि 2014 में एक दिन माड़ीपुर ब्रिज गिर गई और जब ये पता चला तो दौड़कर टीवी खोलने पहुंचा ताकि आज मुजफ्फरपुर को टीवी पर देख सके। सबसे पहले News 24 लगाया और वहां Exclusive चल रहा था मुज़फ्फरपुर ब्रिज को लेकर। बड़ी दुर्घटना नहीं थी इसलिए 2-3 मिनट में सारा मामला बता कर बात ख़बर खत्म हो गई।
बिहार के टॉप 3 शहरों में आने वाले मुजफ्फरपुर को लेकर फिर भी उत्सुकता रहती थी कि टीवी पर अपना शहर दिखे। इस बीच गर्व भी होता था कि हमारा शहर इतना अच्छा है कि यहाँ उस तरह की घटनाएं या ख़बरें नहीं होती जो प्रमुख मुद्दा बने। पर मेरी सोच के उलट अंदर ही अंदर ये शहर सिसक रहा था। इस शहर में सिसकारियां, चीख, दर्द, आंसू सब निकल रहे थे बस न कोई देख रहा था न कोई सुन रहा था, न कोई आंसू पोंछने वाला था। बाहर से शहर खड़ा हो रहा था अंदर से खोखला और खंडहर। मुजफ्फरपुर में लोग दौड़ रहे थे लेकिन बच्चियों के पैर बंधे थे। लाया गया था माँ-बाप का प्यार देने के लिए लेकिन हो रहा था मारपीट और बलात्कार। ये भी उस जगह पर जहाँ से चतर्भुज स्थान (यानि दिल्ली का जीबी रोड और कोलकाता का सोना गाछी) मात्र एक किलोमीटर की दूरी पर होगी। ये इसलिए बताना जरूरी है कि लोग इससे अंजान नहीं है ऐसे जानवर वहां जाते ही हैं पर ये और सहूलियत के लिए एक नया जगह ही बना डाला। सच में ऐसे-ऐसे जगह शहरों में नहीं होतो तो ये जानवर पता नहीं क्या करते?
इसमें कोई दो राय नहीं है कि बढ़ने वाली रेप की घटनाओं को पुलिस-प्रशासन-सरकार-कानून नहीं रोक रही है बल्कि ये वेश्याएं रोक रही हैं।
सबसे बड़ी दुःख की बात एक ये भी है कि किसी भी तरह का कोई अत्याचार महिलाओं पर होती है तो मर्दों को जमकर कोसा जाता है लेकिन मुझे लगता है महिलाएं भी किसी महिला के ऊपर हो रहे अत्याचार की भागीदार है। अब देख लीजिए इस बालिका गृह में रहने वाली बच्चियों को सेवा करने के लिए रहने वाली भी तो उससे मिली थी, डर से हो या पैसे से। पता नहीं ये महिलाएं इतना कमजोर क्यों समझती है? अगर ये चाह लेती तो कब का ये मामला लोगों के सामने आ जाता। पर इतने के बाद भी इस शहर में कुछ खास हलचल नहीं दिखी।
दिल्ली आने के बाद मुझे लगता था कि वहां के लोग ख़बरों या मुद्दों को लेकर उतना एक्टिव नहीं है, जितना होना चाहिए लेकिन मैं बहुत गलत था। लोग बहुत आगे निकल चुके हैंMuzaffarpur Now जैसे 15-20 फेसबुक पेज से लेकर वेबसाइट चल रही हैं और दर्शकों तक अच्छी पहुँच भी है। वह शहर की ख़बरों या इस मामले को जितना उठा पा रहे हैं, उठा रहे है लेकिन सभी ख़बरों को देखने के बाद ये पता चल रहा है कि अभी इसे लेकर किसी को कोई दिलचस्पी नहीं है। पता नहीं मेरे शहर के लोग क्या ये मान कर चल रहे हैं कि इन बच्चियों को इसलिए ही लाया गया, इसलिए कोई बात नहीं जाने दो।
गलत है! ऐसे जानवर पूरे समाज के लिए खतरनाक हैं, आज इनके पास जुगाड़ है तो दीवारों के पीछे ये सब कर रहे हैं अगर कल कोई जुगाड़ नहीं होगा तो खुलेआम भी कर सकते हैं?
ब्रजेश ठाकुर, जैसे लोगों की पहचान करनी होगी, बालिका गृह में केयरटेकर जैसी महिलाओं की पहचान कर आवाज़ उठानी होगी। तभी हमारा समाज बचेगा। मैं कभी भी इस तरह की ख़बरों से नहीं चाहता था कि मेरा शहर सुर्ख़ियों में आए लेकिन आने के बाद भी बहुत दुख के साथ कहना पड़ रहा है कि जिस तरह बड़े मीडिया संस्थानों को ये ख़बर उठानी चाहिए, नहीं उठा रहे हैं। इसलिए ये लड़ाई शहर के लोगों को लड़नी होगी।
जहाँ तक नीतीश कुमार की बात है तो इनके नैतिकता पर सवाल उठ ही रहे हैं। बाहुबली शहाबुद्दीन ने जेल से निकलकर कहा था की नीतीश परिस्तिथियों के मुख्यमंत्री है। अब आप नीतीश को देखिए गौर से, साफ़ दिखता है ये आदमी अंदर से हिल चुका है, ढलान की तरफ जाते दिख रहे हैं, फुर्ती, चुस्ती और स्पष्ट सोच-विचार सब गायब है। यकीं नहीं होता कि यही ओ मुख्यमंत्री है जिसने लड़कियों को ड्रेस, स्कॉलरशिप और साइकल देकर घरों से निकाला ताकि पढ़ सके और एक बेहतर बिहार का निर्माण करे। इसका फायदा भी हुआ किसी-किसी स्कूल में तो लड़की की संख्या लड़कों से ज्यादा हो गई। महिलाओं को आरक्षण दिए। बाहुबलियों को अंदर डलवाया। अधिकतर महिलाएं और लड़की जब चुनाव नजदीक आता था तो पति या घरवाले उसे किसी और को वोट देने के लिए कहते तो ओ बोलती थी हम "नितीशवे को देब।"
जिन लड़कियों और महिलाओं ने इतना विश्वस किया उसका गला नीतीश कुमार क्यों घोट रहे हैं। एक तरफ लड़कियों के बेहतर भविष्य के लिए सुविधा दे रहे हैं तो दूसरी तरफ घर में कैद रहने के लिए भी संसाधन से लेकर, शासन में जगह दे रहे हैं।
अगर आप ऐसे नहीं है तो क्यों इतने दिनों बाद चुप्पी तोड़ी, क्यों नहीं मंत्री मंजू वर्मा, जिनके पति पर आरोप लग रहा है, उसपर कोई कार्रवाई कर रहे हैं। रिपोर्ट आने के बाद कार्रवाई करने में ढील क्यों बरती जा रही थी। आप पाया सम्मान खो रहे हैं। सुशासन की बात तो करते हैं पर उसमें इतना शोषण क्यों हो रहा है। आए दिन रेप जैसी घटनाएं हो रही है, उसके वीडियो वायरल हो रहे हैं। आप ने जिस तरह लड़कियों को जिंदगी में सफल हो इसके लिए घर से निकलने में सहायता की वह या अब सुरक्षित रहने के लिए घर लौटने लगी है। आपने ही ज़ीरो टॉलरेंस की बात कर एक अच्छा काम किया, सरकार गिराने का। फिर भी उससे बढ़ कर काम हो रहे हैं और आप ठीक से कुछ कर नहीं पा रहे हैं।
खैर अंत में इतना ही कहना चाहूंगा जब अब अपने शहर में उतरूंगा, तो पहले जैसा नहीं उतर पाउँगा क्योंकि अब मुजफ्फरपुर पहुँचते ही जेहन में ये सब तस्वीर उभरेगी जबकि पहले तो ऐसा लगता था जो शब्दों में बयां भी नहीं कर पाउँगा। कैसे गर्व करूँ अपने शहर के लोगों पर।

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