स्वतंत्रता दिवस पर झंडा फहराने को लेकर दो तरह के वीडियो सामने आ रहे हैं। एक, जामा मस्जिद में झंडा फहराने को लेकर बहस हो रही है. दूसर, झंडा फहराने के बाद राष्ट्रगान को लेकर. दूसरे वाले वीडियो में जिसमें एक मौलाना बोलते हुए दिख रहे हैं कि ये नहीं होगा।
बुनियादी बात ये है कि पहले वाली परिस्थिति दूसरे की वजह से बनी है। क्योंकि भारत के राष्ट्रगान के गाने को लेकर अगर खुलेआम इस तरह इंकार किया जाएगा तो कहीं न कहीं देश को सभी लोगों को प्रभावित करेगा।
इससे लोग उस शख्स के साथ-साथ पूरे समाज पर भी शक करने लगता है। इस तरह की स्थिति क्यों बनती है उसपर बहुत ही गहनता से विचार होना चाहिए। अगर मौलाना का ये तर्क है कि इस्लाम में इसकी इजाजत नहीं है तो उनको मालूम होना चाहिए कि इस्लाम में मादरे वतन को लेकर क्या कहा गया है? ये बात साफ-साफ है कि अपने वतन की हिफाजत करना उसका फर्ज है। फिर उन्हें ऐसे क्यों लगता है कि इससे धर्म पर आंच आ जाएगी। जिस देश में रहते हैं उसका जयकारा या गुणगान करने में आखिर किसी को क्या दिक्कत हो सकती है?
ऐसा तो नहीं हैं कि वह अपने आप को अभी भी इस देश का दोयम दर्जे का नागरिक समझते हैं, जिस कारण इस तरह की परिस्थिति सामने आती है। अगर राजनीतिक तौर पर भी देखें तो राष्ट्रगान और झंडा- आरएसएस, बीजेपी, मोदी, गोलवालकर, गोडसे ने तो नहीं लिखे हैं या बनाए हैं? फिर राजनीतिक विरोध भी नहीं बनता है। ये सब जितना उनका है उतना ही देश के दूसरे धर्मों और लोगों का भी।
दुनिया के किसी भी देश के नागरिक को अपने राष्ट्रगान और झंडे को लेकर गर्व होता है, अब जरूरत है कि इस तरह की मानसिकता वाले लोगों को भी अपने ही धर्म के दूसरे लोगों से सीखना चाहिए, जिनको राष्ट्रगान को गाने से कोई परेशानी नहीं है. ऐसा करने से क्या वे इस्लाम से खारििज हो गए? नहीं।
सोच को बदलने की आवश्यकता है। अगर फिर भी लगता है कि इसके कुछ शब्दों को लेकर आपत्ति है तो सोचना होगा कि हमारे देश की संस्कृति ही ऐसी है, जिस कारण उसे ऐसा बनाया गया है। यह कोई एक धर्म को मानने वाला देश तो है नहीं, इसलिए इसे गाने में कोई एतराज नहीं होना चाहिए और यहां की संस्कृति के हिसाब से खुद को ढालना चाहिए। उदाहरण को तौर पर कोई अपने घर, परिवार को थोड़े न छोड़ता है फिर अपने संस्कृति के साथ तालमेल बिठाने में कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए।
जरूरी है किु ऐसे लोग अपने आपको दोयम दर्जे का नागरिक न समझे। देश के हर हिस्से परअपना हक समझे। जब ये अपना हक समझने लगेंगे तो इतना तय है कि जबरदस्ती जिस तरह जामा मस्जिद में की गई वह भी दूर हो जाएगी और इन लोगों को बेहतर तरीके से चुप कराया जा सकेगा।
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