लखनऊ में 28 सितंबर की रात हुई विवेक तिवारी हत्या को लेकर हर तरह के सवाल-जवाब अब लोगों
के सामने हैं जो इससे पहले की घटनाओं में नहीं हुआ था।
विवेक तिवारी की
हत्या के बाद पहली बार योगी सरकार में इतनी मजबूती के साथ यूपी पुलिस के कामकाज पर
सवाल उठे। नोएडा के जितेंद्र यादव के एनकाउंटर में भी सवाल उठे थे, इन सब के अलावा
भी कई एनकाउंटर हुए जिनके फ़र्ज़ी होने की बात कही गई। कुछ दिन पहले ही अलीगढ़ में मीडिया को बुलाकर उनकी मौजूदगी में एनकाउंटर का खेल खेला गया, जिसपर भी लगातार सवाल उठ रहे हैं।
लेकिन लखनऊ वाले
मामले में लोगों के सामने जो तस्वीर आई वह बेहद ही दहशत वाले हैं। जब प्रदेश में
योगी की सरकार बनी थी, तब सीएम योगी से लेकर डिप्टी सीएम और मंत्री तक ने बयान
दिया था कि अपराधी यूपी छोड़ दे नहीं तो ठोक देंगे।
इस बयान का मतलब ही
यही था कि योगी के पास और कोई दूसरा आइडिया नहीं है यूपी को अपराधमुक्त करने का, जबकि इसे अंतिम हथियार के रूप में भी इस्तेमाल किया सकता था। ये हो
सकता था कि पहले अपराधियों के रिकॉर्ड खोले जाते और धरपकड़ के साथ-साथ ये सुनिश्चित
किया जाता कि पुलिस की शाह पर अपराधी नहीं बचे। खैर सीएम योगी को ये रास्ता ज्यादा
ठीक लगा और उन्होंने इस तरह के निर्देश दिए। जिस तरह उन्होंने रोमियो स्क्वाड बनाया उसका भी आमलोगों से लेकर पुलिस ने ही जमकर
कानून की धज्जियाँ उड़ाई। कुछ ऐसा
ही मामला एनकाउंटर के आदेश में भी देखने को मिल रही है। सवाल तो ये भी उठेंगे की
आखिर ऐसी क्या बात है कि दोनों आदेश की आड़ में अपराधियों के साथ-साथ बेकसूर और आम
लोगों को भी परेशान किया जा रहा है।
एनकाउंटर का खेल जब
से शुरू हुआ है तब से लगातार चलता जा रहा है, इस मामले में न पुलिस किसी की सुन
रही है नहीं सरकार। जो इसकी जड़ में आया गोली खाया। लेकिन इस बीच कई मामले फर्जी
सामने आने के बाद हंगामे हुए। शुरू –शुरू में
खूब प्रमोशन मिले, वाहवाही हो रही थी, सिपाही को भी पिस्तौल पकड़ा दिया गया और वह भी एनकाउंटर स्पेशलिस्ट बन
गया। सभी इनकाउंटर में व्यस्त रहें, चोरों तक का भी एनकाउंटर कर दिया गया।
लेकिन सबसे बड़ा
सवाल है कि क्या वाकई यूपी में कानून-व्यवस्था सुधारने के नाम पर फर्जी एनकाउंटर
हो रहे हैं? क्योंकि मानवाधिकार
आयोग की रिपोर्ट तो कुछ इसी तरफ इशारा करती है। फर्जी एनकाउंटर के मामले में पिछले
साल राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की भी एक रिपोर्ट आई थी, जिसमें कहा गया था कि फर्जी एनकाउंटर की
शिकायतों के मामलों में उत्तर प्रदेश पुलिस देश में सबसे आगे है। आयोग ने पिछले 12 साल का आंकड़ा जारी किया था, जिसमें देशभर से फर्जी एनकाउंटर की कुल 1241 शिकायतें आयोग के पास पहुंची थीं। इसमें अकेले 455 मामले यूपी पुलिस के खिलाफ थे।
हालांकि सरकार के आंकड़े कुछ और ही बयां करते
हैं। इसी साल फरवरी में एक आधिकारिक आंकड़ा जारी किया गया था, जिसमें बताया गया कि योगी सरकार के सत्ता में
आने के 10 महीने के अंदर पूरे राज्य में करीब 1100 पुलिस एनकाउंटर हुए। इनमें 34 अपराधी मारे गए, 265 घायल हुए और करीब 2,700 हिस्ट्री-शीटरों को गिरफ्तार किया गया।
इसके अलावा पुलिस द्वारा किए गए कई एनकाउंटर ऐसे
भी थे, जिन्हें फर्जी करार दिया गया। मानवाधिकारों के
लिए काम करने वाले एक संगठन 'सिटीजंस अगेंस्ट हेट' ने हाल ही में एक रिपोर्ट पेश की थी और दावा किया था कि यूपी पुलिस द्वारा किए
गए करीब 16 एनकाउंटरों में गड़बड़ियां हैं।
यही नहीं एक रिपोर्ट के अनुसार, 16 महीने की योगी सरकार में 28 जून 2018 तक 2244 पुलिस एनकाउंटर हुए थे, जिनमें 59 अपराधी ढेर हुए, जबकि 4 पुलिसकर्मी भी शहीद हुए हैं। सबसे ज्यादा मुठभेड़ पश्चिम उत्तर प्रदेश
में देखने को मिली। इनमें मेरठ में 720, आगरा
में 601 और बरेली में 343 एनकाउंटर
हुए। यानी 2244 एनकाउंटर में से 1664 एनकाउंटर
पश्चिम उत्तर प्रदेश हुए।
अब सवाल ये उठता है
कि एनकाउंटर को कब-कहां प्रभावी बनाना चाहिए क्या इसपर चर्चा होती है? कानून में अगर एनकाउंटर का प्रवाधान है तो इस बात की भी इजाजत देता है
कि किसी बेगुनाह की जान न जाए। यही कारण है कि इसलिए न जाने कितने लंबे प्रोसेस से
होते हुए एक केस को गुजरना पड़ता है ताकि अपराधी छूट जाए लेकिन निर्दोष मारा जाए। एनकाउंटर में व्यस्त पुलिस को इस बात से क्या मतलब, वह अपने काम में
लगी रही और इसी का नतीजा है विवेक तिवारी की हत्या। आरोपी सिपाही
प्रशांत चौधरी के व्यवहारों से पता चलता है कि कितना सिंघम स्टाइल में ढालना चाहता था खुद को।
इस हत्या की खबर आते
ही सभी जगह आग की तरह फैल गई और लोगों के निशाने पर योगी सरकार आ गई। जो लोग
अपराधी के एनकाउंटर पर अपने आप को सुरक्षित महसूस कर रहे थे अचानक उनके अंदर
असुरक्षा की भावना उत्पन्न हो गई। इसके बावजूद सरकार ने अभी तक एनकाउंटर को लेकर
कोई निर्देश जारी नहीं किए हैं। डर इस बात
का है कि आने वाले दिनों में और भी कई पुलिस कर्मियों पर इस तरह के हत्याओं का
मुकदमा दर्ज न हो जाए। क्योंकि यूपी पुलिस संवेदनशीलता लगातार
देखने को मिल रही है। कुछ दिन मेरठ का एक वीडियो वायरल हुआ जिसमें लड़की को एक
मुस्लिम लड़के के साथ पकड़े जाने पर खुद पुलिसकर्मी किस तरह उससे मारपीट और बदसलूकी
कर रहे हैं। जबकि न तो उसके माँ-बाप ने कुछ शिकायत की नहीं किसी रिश्तेदार ने, अगर
किसी संगठन ने ये काम किया भी तो क्या ऐसा होना चाहिए जो पुलिस ने किया? आखिर उस पुलिस वाले में भी इतनी हिम्मत कहाँ से आई कि इस घटना का वीडियो उसने खुद ही शूट कर लिया और
कहां से शह मिल रही है ऐसे पुलिसकर्मियों को? इनके अंदर इतनी आग, गुस्सा, नफरत है या यह सब भर दिया गया है इसे सरकार के साथ-साथ आमलोगों
को भी सोचना होगा क्योंकि इसमें बहुत कुछ प्रायोजित लग रहा है। इस तरह के काम करने
से उसे किससे मेडल या सम्मान मिलता है, पुलिस विभाग, सरकार या ऐसे संगठन से जिसने मेरठ वाली लड़की के बारे में सूचना दी थी?
दोनों घटनों को
देखने से यही प्रतीत होता है कि दोनों पुलिसकर्मियों की मंशा एक जैसी ही तो थी
अपने आप को हीरो की तरह पेश करना। क्योंकि वह भी देख रहा है कि हत्यारों को टिकट
मिल रहा है, पुलिस में भी कुछ ऐसा ही दिख रहा है क्योंकि मेरठ में जिन पुलिसकर्मियों
ने लड़की से बदसलूकी की थी, उनको गोरखपुर बुला लिया गया। यहां समझ नहीं आ रहा है
कि उन्हें प्रमोशन दिया गया या डिमोशन हुआ।
दूसरी तरफ जिस तरह
विवेक की पत्नी कल्पना तिवारी ने योगी सरकार को लेकर कहा कि पहले से भरोसा बढ़ा
है, उससे सरकार को कल्पना के जरिये घेरने का सपना तो
पूरा होता नहीं दिख रहा है लेकिन सभी को कोशिश करनी चाहिए कि ऐसा भरोसा सभी लोगों
में पैदा हो। जिस तरह से आरोपी पुलिसकर्मी के लिए लोग पैसा जुटा रहे हैं यह भी आने
वाले दिनों में एक गलत संदेश देगी।

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