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तनुश्री दत्ता-नाना पाटेकर के मामले में सर्मथन और विरोध के आधार पर कैसे होगा इंसाफ?



कुछ दिन पहले Metoo अभियान चला था जिसमें महिलाओं से लेकर पुरुषों तक ने अपने साथ हुए उत्पीड़न की बात कही। लेकिन ऐसा क्यों प्रतीत होता है कि इस तरह का आयोजन बस दिखाने के लिए होता है कि उनके साथ गलत हुआ पर उसके खिलाफ आवाज नहीं उठाई जाती।
ये सवाल इसलिए भी उठ रहे हैं कि कंगना रणावत के बाद अब तनुश्री दत्ता का मामला जोड़ पकड़ता जा रह है लेकिन अभी तक किसी महिला और पुरुष ने
इस कैंपेन को रिलॉन्च नहीं किया है। हां! दबी आवाज़ में भले ही कुछ लोगों का समर्थन तनुश्री दत्ता को मिल रहा है।
तनुश्री दत्ता वाले मामले में एक बात और भी साफ दिख रही है कि अगर यहीं काम किसी गैर बॉलीवुड या हाई प्रोपाइल लोगों के द्वारा न होकर किसी आम जगह, आम लोग द्वारा किया गया होता तो हंगामा जमकर होता। वें भी तनुश्री के पक्ष में बोलते दिखते कि महिलाएं सुरक्षित नहीं है, जो आज चुप हैं।
Metoo तरह के कैंपेन बड़े लोगों या स्टार के खिलाफ नहीं चलाई जा सकती क्योंकि ये भी महिला सुरक्षा, सेक्सुअल हैरेसमेंट से जुड़ा है। जिस किसी के साथ भी किसी आम या खास किसी के द्वारा भी इस तरह कह हरकत की जाती है तो जरूर उसके खिलाफ आवाज उठनी चाहिए। लेकिन इतने राजनीतिक तरीके से विरोध क्यों?
क्या दजो चुप हैं उन्हें लगता है नाना पाटेकर ऐसा कर ही नहीं सकते या उनके कद के सामने किसी की बोली नहीं निकल रही या जो तनुश्री के साथ खड़े हुए हैं उनका मनना है कि वही सही है।
दरअसल मसला सही गलत के बीच फंसा भी नहीं है। फंसा है तो इंसाफ के बीच। कोई नहीं बता सकता कि कौन गलत है और कौन सही लेकिन अगर कोई मुद्दा सामने आया है तो कोई आरोप लग रहा है तो इसकी जांच के लिए आवाज उठाई जा सकती है। जब सभी इसके खिलाफ आवाज उठाएंगे तो इतना जरूर है कि दबाव बनेगा और ऐसे में ये पूरा मामला एक कानूनी प्रक्रिया में पहुंच जाएगा। वहां सब अपनी-अपनी दलीलें रखेंगे फिर दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा। इस मामले में सिर्फ आरोप लगाने और उससे इंकार करने से साफ नहीं हो पाएगा कि कौन सही बोल रहा है कौन गलत, जिससे आरोप लगाने वाले या जिसपर आरोप लगा है दोनों पर उंगलियां उठेंगी। जब पूरा मामला कानून प्रक्रिया के तहत जाएगा और फिर जब सबकुछ साफ हो जाएगा तो लोगों को खुद पता जचल जाएगा कि पूरा बात क्या थी।
यहीं नहीं अगर तनुश्री को लगा कि उनको नाना पाटेकर ने गलत तरीके से छूने की कोशिश की, जिसको लेकर उनका ऑब्जेक्शन भी है, इस बात को वही बेहतर समझ सकती है लेकिन नाना पाटेकर का इंटेंशन गलता नहीं था तो उसी समय जब ये मामला उठा था तनुश्री से बातकर इसे खत्म क्यों नहीं किया गया। उपर से जिस तरह तनुश्री पर हमले हुए, उससे उनके खिलाफ ही मत बने। क्योंकि लड़की की बिना इजाजत के उसे छूना वैसे भी अपराध की श्रेणी में आता है।
इस मामले में भी बड़ी संख्या में महिला और पुरुष बंट चुके हैं। महिलाएं अपना तर्क रख रहीं हैं तो वहीं पुरुष अपना। ज्यादातर पुरुष तनुश्री को गलत बता रहे हैं तो महिलाएं नाना पाटेकर को। ये एक तरह का डिवीजन ही तो है महिलाओं और पुरुषों के बीच।
कुछ दिन पहले कुछ पुरुषों ने भले ही Me too लिख दिया हो लेकिन कितने पुरुष होंगे जिन्होंने कुछ गलत हरकत की हो और वें इस तरह का कैंपेन चलाए कि हां, हमने बी ऐसी हरकत की है। अगर किसी लड़की को लग रहा है कि उसके साथ ऐसा किया गया तो आवाज़ भी वही उठाएगी न कि कोई पुरुष आवाज़ उठाएगा की उसन ऐसा किया।
यहां भी अफसोस की बात ये है कि फिल्मों के जरिये तमाम मैसेज और महिला सशक्तिकरण की बात करने वाले ये फिल्मी दुनिया के सितारे भी आम लोगों की तरह इस मुद्दे पर चुप्पी साध ले, खुलकर सामने न आए तो इतने ज्ञान बांटने के क्या जरूरत है।
आप खुद सोचिए की हाल ही में सुष्मिता सेन ने कहा कि ट्रेन में उनके साथ किसी 14-15 साल के लड़के ने इस तरह हरकत की तो उस बच्चे को पकड़ा और पूछा तब खुद उस बच्चे ने अपनी हरकत के लिए माफी मांगी। जब सुष्मिता सेन को लगा कि उस छोटे बच्चे ने इस तरह की हरकत की है तो फिर तनुश्री को क्यों नहीं लग सकता कि उसके साथ गलत हुआ है? तनुश्री की अपनी जिंदगी है उसे जो ठीक लगा उसने किया लेकिन अगर उसको कुछ गलत लगा तो बोली। इसलिए इसमें किसी के इमेज की बात नहीं है, अगर ये मामला खुलकर सामने आ जाता है तो इससे बॉलीवुड के इमेज को ही फायदा होगा जिसपर आएदिन आरोप लगते रहते हैं कि यहां सेक्सुअल हैरेसमेंट किया जाता है। और वैसे भी इस मामले में नाना पाटेकर को तो खुद आगे आकर सभी स्थिति को साफ करनी चाहिए क्योंकि उनकी इमेज ऐसी रही नहीं है फिर भी उनपर आरोप लगे हैं तो जरूरी है कि आपनी बात रखें।

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