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देश की सरकारी उच्च और बेसिक शिक्षण की शिक्षा में इतना अंतर क्यों?

एक तरफ देश में उच्च शिक्षा के लिए आईआईटी,आईआईएम या आईआईएमसी जैसे और भी कई टॉप के सरकारी संस्थान हैं जहां प्रवेश के लिए कठोर परिश्रम करने पड़ते हैं वहीं बेसिक शिक्षा पर ध्यान दे तो वहां कि स्थिति बेहद खराब है। दोनों ही सरकारी संस्था होने के बावजूद शिक्षा व्यवस्था में इतना अतंर क्यों? क्या उच्च शिक्षण संस्थानों की तरह बेसिक शिक्षण संस्थानों में शिक्षा दे पाना कठिन है? क्या बेसिक शिक्षा व्यवस्था को भी उच्च शिक्षा की तरह नहीं बनाया जा सकता? उच्च शिक्षा के लिए छात्रों की संख्या सीमित है वहीं बेसिक शिक्षा के लिए ज्यादा। फिर भी शिक्षा में इतने बड़े अंतर को क्या कम नहीं किया सकता? किया जा सकता है लेकिन उसके लिए सबसे पहला काम है नियमित दूरी पर स्कूलों को होना। इसके बाद शिक्षकों की बहाली में पारदर्शिता लाना। आज भी देश में कहीं-कहीं सरकारी स्कूलों की दूरी बहुत ज्यादा है। स्कूलों में  बच्चों और शिक्षकों का ठीक ठाक अनुपात हो, जिससे पढ़ाई की व्यवस्था बेहतर हो। क्या सरकारी स्कूलों में एडमिशन के लिए भी सरकार सिमतुल्ला, नवोदय या सैनिक स्कूलों जैसी व्यवस्था नहीं कर सकती है? जिससे बेसिक शिक्षा ...

दुनिया के कुछ ही देशों तक क्यों सीमित है क्रिकेट?

क्रिकेट को भले भारत में एक धर्म की तरह देखा जाता हो लेकिन इसकी पहुंच विश्व स्तर पर बहुत कम है ,  क्रिकेट के अलावा अन्य खेलों को देखें तो ,  फूटबॉल और हॉकी की एक वैश्विक पहचान है। इसके बहुत से कारण हैं ,   अगर नंबर एक पर ध्यान दें तो इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया से निकला क्रिकेट इन देशों के अलावा एशिया के देशों और वेस्टइंडीज तक ही पहुंच पाई। हालांकि आने वाले दिनों में कई जगह आईसीसी प्रतियोगिताएं आयोजित कर रही हैं जिससे आने वाले दिनों में कई और टीमें हमें देखने को मिलेगी लेकिन फिलहाल की स्थिति को देखते हुए लगता है कि इसमं अभी थोड़ा वक्त लगेगा। ऐसा नहीं है कि अन्य देशों ने हाथ नहीं आजमाए हैं ,  बहुत से देशों ने इस क्षेत्र में कोशिश की अपने पैर जमाने की। जिसमें ,  हॉलैंड ,  आयरलैंड ,  नामबिया ,  केन्या ,  यूएई ,  अमेरिका ,  ओमान ,  नेपाल ने भी हाल में ही एंट्री ली है। इन टीमों में सिर्फ एक जेनरेशन ने क्रिकेट खेला ,  उसके बाद बहुत कम दिलचस्पी दिखी या फिर खिलाड़ी नहीं मिले जिससे टीम बन सके। उसके पीछे भी कई कारण है ...