हर आंदोलन का एक अंत होता है, जैसे- देश की आजादी के लिए आंदोलन चला हम आजाद हो गए, आंदोलन खत्म। जय प्रकाश नारायण आन्दोलन चला, खत्म हो गया। अन्ना आंदोलन चला, खत्म हो गया। राम जन्मभूमि के लिए चल रहे हैं लेकिन ये भी कभी खत्म हो जाएगा।
क्या कभी किसान आंदलोन खत्म हुआ नहीं, सालों से चलता आ रहा है और चलता ही रहेगा। कारण यह है कि आजादी की तरह किसानों का मुद्दा एक बार का तो है नहीं कि आज़ादी मिल गई बात खत्म।
ये हर सीजन, हर साल बदलता रहता है और आता रहता है। कोई भी सरकार एक बार में चाहे कि ऐसा कुछ कर देंगे ताकि यह खत्म हो जाए, ऐसा नहीं होने वाला। हाल ही में दिल्ली में किसानों पर लाठी बरसाने का मामला आया तो चारों तरफ हंगामा मचा लेकिन क्या इस पर किसी ने भी गंभीर होकर सोचा। नहीं!
क्या कभी किसान आंदलोन खत्म हुआ नहीं, सालों से चलता आ रहा है और चलता ही रहेगा। कारण यह है कि आजादी की तरह किसानों का मुद्दा एक बार का तो है नहीं कि आज़ादी मिल गई बात खत्म।
ये हर सीजन, हर साल बदलता रहता है और आता रहता है। कोई भी सरकार एक बार में चाहे कि ऐसा कुछ कर देंगे ताकि यह खत्म हो जाए, ऐसा नहीं होने वाला। हाल ही में दिल्ली में किसानों पर लाठी बरसाने का मामला आया तो चारों तरफ हंगामा मचा लेकिन क्या इस पर किसी ने भी गंभीर होकर सोचा। नहीं!
सरकार क्या करती है कि एक बार, एक साल में कभी सूखार तो कभी दहाड़ में पैसे बांट देती है, कभी किसी एक फसल के लिए ऋण माफ कर देती है, किसी एक फसल के लिए सब्सिडी दे देती है और चाहती है बात यहीं खत्म हो जाएगी।
ऐसा नहीं है हर प्रदेश में अलग-अलग तरीके की खेती होती है, जैसे उदाहरण के तौर पर- यूपी में गन्ना, बिहार में चावल और पंजाब में गेंहू। क्या सरकार इस पूरे फसल को लेकर एक बैलेंस नहीं बना सकती कि हर सीजन में किसानों की मदद की जाए ताकि उनपर बोझ न बढ़े?
होता क्या है कि किसानों के लिए जो पैसा जारी किया जाता है, वह कई जगहों से बंटते हुए किसानों के पास पहुंचता है। इसमें भी 6 महीने से साल भर तक का समय लग जाता है। तब तक किसी दूसरे फसल का समय हो जाता है। इस दौरान अगर उसकी फसल अच्छी नहीं हुई तो उसके खर्चे को भी निकलना मुश्किल हो जाता है। साथ ही उसपर मिलने वाली सब्सिडी के पैसे के लिए दौड़-धूप और पेपर बनवाते-बनवाते 6 महीनो में हज़ारों खर्च कर देते हैं और यहीं से किसान टूटने लगता है। उसके नुकसान की भरपाई सब्सिडी के पैसे नहीं कर पाती और नहीं आगे की खेती के लिए पर्याप्त होता है। किसी फसल को उपजाने के लिए किसानों को खेत की जुताई, बुआई, छिंटाई, मसाले से लेकर जन मजदूर तक के खर्चे होते हैं। सरकार एक बार में पैसे भले भेज दे लेकिन किसानों का थोड़ा-थोड़ा पैसा धीरे-धीरे ऐसे निकलता है कि फसलों के खड़े होने तक उसके जेब खली हो जाते हैं।
ऐसे में अगर ऊपर वाले ने साथ नहीं दिया तो फिर और भी ज्यादा दिक्क्त है, वह पहले ही जेब खाली कर चुका है अब तो पूरी तरह खेत पर आश्रित हो जाता है। ऐसे में किसी भी तरह के विपदा को झेलने के काबिल कोई किसान नहीं बचता है। इसके बाद उसका फसल बर्बाद हो जाए तो कहां ये किसान अपने आप को संभाल सकेगा। इस दौरान बीज से लेकर खाद्य मसालों के लिए किस तरह की दौड़ धूप करनी पड़ती है, ब्लैक में लेना पड़ता है, इस कष्ट को भी कम नहीं आंकना चाहिए। किसान सुबह से लगते हैं इस काम में तो रात होने तक लगे रहते हैं। कभी-कभी रात-रात तक।
यही नहीं जरूरत के सामान जुटाने से लेकर घर में अनाज आने तक किसान कभी चैन से नहीं रह पाता। कितने समय के खाने को त्यागना पड़ता है। फिर अगर फसल बर्बाद हो भी जाए तो हिम्मत नहीं हारते और अगले फसल की तैयारी में लग जाते हैं। जिसके लिए कर्ज लेते हैं यहीं से उसपर कर्ज बढ़ता है। उसने जितनी पूंजी लगाई वह तो न किसी किसान को फसल दे पाती है और नहीं सरकार। अगर दूसरी फसल में भी यही हाल रहा तो किसान टूट जाता है। दूसरे उस फसल ने संभाल लिया तो वह उठ कर खड़ा हो पाता है अगले कदम के लिए। लेकिन जो टूट जाता है वह अन्दोलन के रास्ते पर निकलता है या आत्महत्या के। हालांकि जिस भी किसान को अच्छी फसल हई, वह उसे बेचना चाहे तो किसानों की मेहनत के हिसाब से कम मुल्य मिलता है। अगर कोई व्यापारी व्यापार करता है तो उसके लाए गए सामानों को बेचने के लिए ग्राहकों पर निर्भर होना पड़ता है जो कभी न कभी तो आएंगे ही अगर नहीं भी आए उसका दूसरा रास्ता निकल सकता है। जबकि किसानों के ऐसा साथ नहीं होता, मेहनत करते हैं, पैसा खर्च करते हैं, फिर भगवान पर आश्रित होते हैं और उसके बाद खाने और सरकार के पैसे के लिए मोहताज हो जाते हैं।
ज्यादातर किसान को मदद तभी मिलती है जब विपदा आती है। ये उन किसानों का हाल है जो पूरी तरह किसानी पर निर्भर हैं, इनके पास काम से कम 5 बीघा जमीन होते हैं। ऐसे किसानों को के लिए जरूरी है कि सरकार उनके लिए उचित समर्थन मुल्य का प्रावधान करे या वह साधन मुहैया कराए जिससे ये अनाज उपजा कर सरकार का लोन चुका पाए और अपनी ज़िन्दगी भी अच्छे से गुजार सके।
दूसरे प्रकार के किसान वह होते हैं जिनके पास इससे कम बीघा जमीन हो और वह खेती ही इसलिए करता है कि उसके खाने के लिए हो जाए। थोड़ा बहुत बचे तो बेच दे, ये अपना घर चलाने के लिए अलग से कोई काम करते हैं। ऐसे किसानों को सरकार के सब्सिडी से बहुत कम मतलब होता है।
तीसरे वैसे किसान होते हैं जो खेत बंटाई पर लेते हैं और उपज का कुछ हिस्सा अपने हिस्से रखते हैं कुछ जमीन मालिक को देते हैं। इनका भी कोई साइड का काम होता और ये सीजन के हिसाब से अपने काम को करते हैं ताकि घर का काम चले खरीदना न पड़े।
लेकिन देश की तरक्की और जीडीपी में पहला वाला किसान ज्यादा योगदान देता है क्योंकि उसकी रोजी रोटी वही होती है और ऐसे लोग ही टूटते हैं। सरकार को एक ऐसी योजना बनानी होगी कि इन किसानों की जरूरत के समय सहायता की जाए और सही दाम पर अपने अनाज को बेच पाए।
बहुत लोग इन्हीं मुसीबतों को झेलते हुए किसानी छोड़ चुके हैं, अलग काम धंधे में लग चुके हैं, उनकी जमीन या तो परती पड़ी है या फिर बंटाई लगा है या उतना ही खेती करते हैं जिससे उनके घर की पूर्ति हो सके। अगर बाकी बचे किसान को भी यही करने पर मजबूर होना पड़े तो फिर आप समझ सकते हैं कि इतनी बड़ी जनसंख्या वाले देश को अनाज के तौर पर संभालना कितना मुश्किल हो जाएगा।
यहां ऊपर वाले का काम अपने बस में नहीं लेकिन नीचे की सरकार जिनके हाथ में शक्ति है उन्हें ऐसे किसानों की मदद करनी चाहिए। लाठी नहीं बरसानी चाहिए एक तो मेहनत कर-कर ओ खुद जले होते हैं और सरकार उनपर पानी फेंकने के लिए कहती है उससे किसान ठन्डे नहीं होते बल्कि उनकी आग और भूख को समझने की जरूरत है। ऐसा नहीं होना चाहिए कि आत्महत्या के रास्ते को छोड़ अन्दोलन के रास्ते आए तो आप उनको पिटवाए, ऐसे में उनका और मनोबल टूटता है, जिसका नुकसान आज न कल देश को ही भुगतना पड़ेगा। क्योंकि किसान पहले भगवन से फसल के समय मिन्नते करता है, फसल के बर्बाद होने पर सरकार से मांग करता है , फिर पुलिस की लाठी खाता हैं, अगले अन्दोलन के लिए मीटिंग करते हैं या मर जाते हैं और नेताओं को नेतागिरी करने का एक और मुद्दा मिल जाता है। ऐसा ही मुद्दतों से चल रहा है।
एक बात और हर इंसान की एक पॉलिटिकल चॉइस होती है लेकिन किसानों का नहीं। वह बस ये चाहती है कि सरकार कोई भी हो उसकी मदद करे, इसलिए सरकार इस बात को समझे और किसानों के लिए एक ऐसा मॉडल तैयार करे, जिससे किसान अपने आप को समृद्ध कर सके, जैसे बाकि लोग करते हैं। इससे आने वाली पीढ़ी भी किसानी की महत्व को समझे और इसे करे। इसी में देश की भालई है और यहाँ के लोगों की। विकास के इस मॉडल को छोड़ना बहुत हानिकारक होगा।

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