असम, मुम्बई के रास्ते अब किसी एक घटना के बहाने बिहार-यूपी के लोगों को गुजरात से भगाया जा रहा है। कुछ के साथ मारपीट की घटना भी हुई है। एक 14 महीने की बच्ची से हुई रेप की शर्मनाक घटना ने गुजरात के लोगों में यह आक्रोश उत्पन्न कर दिया। रेप के आरोप में बिहार के एक शख्स की गिरफ्तारी के बाद कुछ वहां के लोग इन राज्यों के सभी लोगों को जिम्मेदार मान बैठे।
ऐसा बिल्कुल भी नहीं है कि इस घटना के पीछे सालों से दबी वह बात नहीं होगी, जिसको “रोजगार” कहते हैं। दरअसल असम, दिल्ली, मुम्बई की तरह बड़ी संख्या में गुजरात में भी यूपी-बिहार के लोग कारोबार और मजदूरी करने जाते हैं। इसका साधारण सा कारण है, इन दोनों राज्यों की तुलना में गुजरात में ज्यादा संसाधन। हमला करने वाले कई सालों से देख रहे थे कि उनके रोजगार में ये लोग दूसरे राज्यों से आकर रुकावट बन रहे हैं, आक्रोश का एक कारण ये भी था। लेकिन उन्होंने कभी इस बात पर ध्यान नहीं दिया होगा कि जो अब समझ आ रहा है तो वे इस घटना के बहाने अपने उस आक्रोश को भी निकाल रहे हैं।
उन्हें सोचना चाहिए कि जब उनके पास रोजगार तथा पैसे की कमी नहीं थी तो बिहार और यूपी के लोगों की जरूरत थी, अब जब उनको खुद इसकी जरूरत महसूस हो रही है तो लोग एक बहाने को लेकर हमला कर रहे हैं।
इस बीच इनको एक बात नहीं दिखती वह है बिहार-यूपी के लोगों की मेहनत। 1-2 साल तक अपने बच्चों को छोड़कर बाहर रहते हैं, अपने घर से मीलों दूर परिवार का पेट भरने के लिए आपना पेट काटते हैं, उनके न सोने का ठीक होता है न खाने का। यूपी-बिहार के लोग उस राज्य की तुलना में कम पैसों में और पूरी मेहनत से काम करते हैं। यहीं कारण है कि इनकी जरूरत होती है और जब लगता है कि इनकी जरूरत नहीं है तो भगाने लगते हैं।
ये अपने परिवार से दूर रहने और थकान मिटाने के लिए पीते हैं और यही नहीं हर कोई जानता है कि सेक्स की लोगों को जरूरत होती है, फिर यहीं से इनके मन में धीरे-धीरे इस तरह की घटना को अंजाम देने का ख्याल आने लगता है, जो बेहद ही शर्मनाक है।
जैसा कि देखा गया है, असम से लेकर मुंबई और अब गुजरात में भी मजदूर वर्ग के लोग ही निशाना बनते हैं। सवाल ये है कि क्या बिहार और यूपी के लोगों को भगा देने से रेप की घटनाएं गुजरात में रूक जाएंगी। सच्चाई ये है कि ऐसी शर्मनाक घटना का जाति, धर्म और प्रांत नहीं होता।
जैसा कि देखा गया है, असम से लेकर मुंबई और अब गुजरात में भी मजदूर वर्ग के लोग ही निशाना बनते हैं। सवाल ये है कि क्या बिहार और यूपी के लोगों को भगा देने से रेप की घटनाएं गुजरात में रूक जाएंगी। सच्चाई ये है कि ऐसी शर्मनाक घटना का जाति, धर्म और प्रांत नहीं होता।
इसके पीछे भी राजनीति होगी, नहीं होने का सवाल ही नहीं है। कुछ उल्फा और मनसे के राज ठाकरे जैसे लोग यहां भी होंगे। जो इस तरह की घटनाओं को हवा देते हैं।
इसमें कांग्रेस के कल्पेश ठाकोर का नाम आ रहा है तो कहना यहां जरूरी है कि उन्हें बिहार और यूपी की सत्ता में तो रहना नहीं है फिर हो सकता है कि इस बहने वह गुजरात में अपनी जमीन तैयार कर रहे हों।
इसमें कांग्रेस के कल्पेश ठाकोर का नाम आ रहा है तो कहना यहां जरूरी है कि उन्हें बिहार और यूपी की सत्ता में तो रहना नहीं है फिर हो सकता है कि इस बहने वह गुजरात में अपनी जमीन तैयार कर रहे हों।
ऐसे में कांग्रेस भी इस मुद्दे पर किसी भी तरह से कल्पेश ठाकोर का बचाव करने की कोशिश करेगी क्योंकि अगर उन्हें हटाया तो गुजरात से एक खास वर्ग का वोट बैंक कटेगा और अगर नहीं हटाया तो यूपी-बिहार में इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा। इसलिए कांग्रेस कोशिश करेगी कि किसी तरह इस मामले की जिम्मेदारी बीजेपी पर थोपी जाए।
यहां बीजेपी भी जमकर राजनीति कर रही है और अपनी जिम्मेदारियों पर बात नहीं कर रही है। अगर बीजेपी सरकार को लगता है कि इस मामले में कल्पेश का हाथ है तो फिर उन्हें गिरफ्तार क्यों नहीं कर रही? बीजेपी भी दोनों तरफ देख रही होगी। नरेंद्र मोदी तो इस समय गुजरात में हैं नहीं, वहां कोई ऐसा नेता भी नहीं दिखता जिसे बिहार-यूपी से जीतकर केंद्र की राजनीति में जाना हो, इसलिए अगर कल्पेश को पकड़ती है तो सीधी बात है कि वे इस पर भावनात्मक खेल खेलकर अपने पक्ष में लोगों को मोड़ने की कोशिश करे। इसलिए बीजेपी भी गुजरात बचाने की कोशिश कर रही है वैसे भी पिछले विधानसभा चुनाव में हारते-हारते जीती थी।
यही नहीं यूपी बिहार में बीजेपी ये बोल बोलकर ये माहौल बनाना चाहेगी कि इसमें सारा खेल कांग्रेस का है, जिससे ये दोनों राज्य बचा रह जाए। लेकिन ऐसा नहीं है कि इस घटना के पीछे बीजेपी का कोई रोल नहीं होगा। इस डर से भी गिरफ्तार नहीं कर रही होगी कि अगर कल्पेश इस मामले में बरी हो जाता है फिर किरकिरी उन्हीं की होगी। हालांकि इस बात की चर्चा यूपी-बिहार के मजदूरों में आम होने लगी है कि इसमें कांग्रेस के नेता का हाथ है जिसका फायदा बीजेपी को मिल सकता है वहीं कांग्रेस को इस आरोप से बचना है तो कोई ठोस कदम उठाना होगा।
अब जो भी हो लेकिन इस देश को जो लोग अटूट भारत बनाने की चाह रखते हैं, उनको पहले चाहिए की देश में ही अटूट राज्य की बुनियाद डाले।
बिहार-यूपी के लोग मानेंगे नहीं ये कहीं न कहीं जाकर रोजगार करेंगे ही। गुजरात न सही कहीं और जाएंगे लेकिन बिहार सरकार के साथ-साथ केंद्र सरकार को भी सोचने पर ये मजबूर करना होगा लोगों को। क्या झारखंड के अलग होने के बाद बिहार में रोजगार भी काट गया? कब तक ये लोग दूसरे राज्यों में जाकर इस तरह दूसरों का रोजगार लेंगे और मार खाने पर मजबूर होंगे। माना कि जनसंख्या के हसाब से बिहार-यूपी की स्थिति खराब है लेकिन ज्यादा लोग भी तो यहीं से जाते हैं दूसरी जगह रोजगार के लिए। सरकार इतना तो कर सकती है कि कम से कम 50 प्रतिशत लोगों को ही रोजगार मिल जाए ताकि दूसरे राज्यों पर भी ज्यादा बोझ न बढ़े।
नीतीश कुमार, जो पिछले 13 साल से सत्ता में हैं वह इसके लिए क्या प्रयास कर रहे हैं अब उन्हें आम लोगों के बीच जाकर बताना चाहिए? पिछली सरकारों ने क्या किया उसको छोड़िए लेकिन अभी तो नीतीश कुमार हैं और केंद्र की बीजेपी सरकार के साथ शासन कर रहे हैं। अब तो इस समस्या का कुछ हल निकाला ही जा सकता है।

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