मजदूर हैं, मजबूर हैं और घरों से बहुत दूर हैं
कोई साइकिल से सफर कर रहा है, कोई पैदल ही चल रहा है
किसी के पास थोड़े पैसे हैं, किसी के खाली पॉकेट हैं
किसी के गर्भ में बच्चा है, किसी के कंधे पर बैठा है
मंजिल उनका घर है, बहुत लंबी डगर है
मजदूर हैं, मजबूर हैं और घरों से बहुत दूर हैं
चल वे भी रहे हैं जो ठीक से चल भी नहीं पा रहे हैं
गांव भी वही जा रहे हैं जो गरीबी की सूची से बाहर नहीं हैं
पास चप्पल भी नहीं है लेकिन उन्हें चलने से डर नहीं है
सरकार है, आस है लेकिन सब निराश कम नहीं हैं
मजदूर हैं, मजबूर हैं और घरों से बहुत दूर हैं
साथ में कुछ सामान हैं, देखें तो लगता है जैसे आसमान है
भूखा-प्यासे, पैदल हैं और गाड़ी पर भी सैकड़ों सवार हैं, रास्ते में खड़े मददगार हैं
परिवरा भी परेशान है, प्रशासन ने कर रखे क्वारंटीन के इंतजाम हैं
देश में संकट का ये नया अंदाज़ है, हल नहीं इसका आसान है
मजदूर हैं, मजबूर हैं और घरों से बहुत दूर हैं
कोई रो-रोकर रास्ता काट रहा है, कोई थकान मिटाने को हंसता एक बार है
किसी की मौत रास्ते में करती इंतज़ार है, कोई करता सिस्टम की शिकायत कई बार है
इस बीच सरकार ने शायद ऐसा सोच लिया है, इनकी मदद करना जैसे हराम है
दिख तो ऊपर और नीचे की शक्तियों को सब रहा है पर किया जा रहा नज़रअंदाज़ है
मजदूर हैं, मजबूर हैं और घरों से बहुत दूर हैं
घर जाने पर भी नहीं आराम है लेकिन इनके हौसलों की नहीं होती हार है
कोई घर पहुंचते ही निढाल है और दर्द बेहिसाब है, किसी की पहुंच रही लाश है
सब देख सरकार ऐसे कर रही आर्थिक पैकेज का ऐलान है, जैसे एहसान है
लेकिन हो रहा उनका जो नुकसान है उसका नहीं कोई अनुमान है
मजदूर हैं, मजबूर हैं और घरों से बहुत दूर हैं
किसी ने न आने की सोच ली है, किसी का आफत के अंत हो जाने तक कूच है
इन्हें थोड़ी जरुरत भले सहयोग की है, इसके बावजूद होते ये मजबूत हैं
जो इनके जाने के असर से महदूद हैं, वो भी जल्द पछतायेंगे ऐसा जरुर है
दुनिया जब फिर से पटरी पर होगी, प्रतिक्षा उस पल की है
फिलहाल ये मजदूर हैं, मजबूर हैं और इन्हें चलना बहुत दूर है.
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Bahot badhiya likha hai Hassan, sab khulne ke bad un states aur company walo ko pata chalega majdoor Kya hota hai
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