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Showing posts from October, 2018

इलाहाबाद का नाम बदलने से पहले ये तो सोच लेते सीएम योगी जी

इलाहाबाद। इस शहर का नाम सुनते ही , गंगा-यमुना के संगम , इलाहाबाद विश्वविद्यालय , इलाहाबाद हाईकोर्ट , कुम्भ मेला , अमिताभ बच्चन और मोहम्मद कैफ के चेहरे के सामने आ जाते हैं। मुझे याद है कि एक बार बचपन में दिल्ली से वापस बिहार लौट रहा था। रात होने लगी थी और मैं सो गया था कि एक स्टेशन पर ट्रेन रुकी। मेरी नींद खुली तो किसी से पता चला ये इलाहाबाद रेलवे स्टेशन है। मैं खिड़की के बाहर देखने लगा , देखते-देखते मुझे याद नहीं कि कब नींद आई लेकिन इतना याद है ' गंगा के किनारे बसे इस शहर को मैंने जगमगाते हुए देखा , इस शहर को मैंने एक दीये की दो रोशनी में देखा। ' पानी के अंदर भी वह दीया वैसे ही जल रहा था जैसे पानी के बाहर , बुझने का नाम नहीं ले रही थी और मैं देखे जा रहा था। उस दिन मुझे सपनों के शहर होने का एहसास हुआ और मुलाकात भी। उस दिन से आजतक इलाहाबाद का नाम आते ही वहीं जगमगाता शहर दिखता है। जब मैं थोड़ा बड़ा हुआ तो बहुत बेकरारी से पता किया कि वह कौन सा शहर था। तो इस बात पर मुहर लगी कि इलाहाबाद था। मेरी आँखों के सामने से वो जगमगाता शहर दूर होने ही वाला था कि न्यूजीलैंड के खिलाफ एक...

क्या पीएम मोदी ने इसलिए नहीं दिया सानंद के पत्र का जवाब?

गंगा की अवरिलता और निर्मलता को लेकर 112 दिनों से आमरण अनशन पर बैठे पर्यावरणविद् प्रोफेसर जीडी अग्रवाल उर्फ ज्ञान स्वरुप सानंद का गुरुवार को निधन हो गया. उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को तीन बार पत्र लिखा था. हालांकि एक बार भी वहां से कोई भी जवाब नहीं आया. अब सवाल ये भी है कि 2011 में जब स्वामी सानंद अनशन कर रहे थे तो उस समय नरेंद्र मोदी ने उनकी सेहत की कामना करते हुए ये उम्मीद जातई थी तत्कालीन केंद्र सरकार इसपर काम करेगी। वहीं नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में गंगा के कामों से निराश होकर अनशन पर बैठे स्वामी सानंद ने उन्हें खत लिखा तो उसका कोई जवाब नहीं मिला। हालांकि इस दौरान उमा भारती मिली और नितिन गडकरी से फोन पर बात हुई लेकिन ऐसी क्या बात थी जो खुद प्रधानमंत्री ने उनके पत्र का संज्ञान नहीं लिया और उनके मंत्री भी भरोसा नहीं दिला पाए। कहीं न कहीं मंत्रियों की बातों में कमी रही होगी या वह विश्वास नजर नहीं आया होगा जो सानंद अपना अनशन तोड़ते। अगर सानंद को पीएम मोदी की बातों पर ही विश्वास होता जैसा उन्होंने खुद कहा तो जो बात उनके मंत्री जाकर कह रहे थे वहीं बात उन्होंने खुद क्यों नहीं कह...

लड़की के फ्रैंडली होने का मतलब f**king के लिए दावत देना नहीं होता

इस समय देश में 'मी टू' अभियान चल रहा है। जिससे कई क्षेत्रों में मुग़ल बने बैठे लोग बेनकाब हो रहे हैं। ऐसे-ऐसे संस्कारियों के संस्कार सामने आ रहे हैं जो सोचने पर मजबूर कर देती है। हालांकि अधिकतर संख्या ऐसे लोगों की होगी जो कभी न कभी अपने बचपन से लेकर जवानी तक, जवानी से लेकर बुढ़ापे तक,  कुछ ऐसा किया होगा जो मी टू के फ्रेम में फिट बैठता हो। इसलिए जो महिलाएं आरोप लगा रही हैं उन्हें समझना चाहिए। क्या बोलने जा रही हैं और क्या हुआ था? क्योंकि इससे उसकी गंभीरता बनी रहेगी और इस कैंपेन की वैल्यू भी बढ़ती रहेगी।  इसके लिए कुछ बातों का विशेष ध्यान रखना होगा क्योंकि अगर कभी हंसी-खेल में , अपनी मर्जी से, अपनी सहमति से कुछ हुआ हो और अब उसके साथ अच्छे संबंध नहीं हैं तो इसे बिलकुल भी 'मी टू' कैंपेन से जोड़ना उचित नहीं होगा। उन्हीं मामलों को सभी के सामने रखना चाहिए जिनके साथ जोर जबरदस्ती के साथ-साथ, झांसा, लालच देकर इस तरह की गंदी हरकत की गई हो। अगर किसी तरह की लालच में कुछ किया गया हो अपनी मर्जी से, उसे भी इसमें शामिल करना उचित नहीं होगा। ऐसे मामलों को भी मी टू कैंपेन से जोड़ा जा रहा...

आगामी चुनाव में अपनी छवि के साथ-साथ कांग्रेस की नैया पार लगा पाएंगे राहुल गांधी?

राहुल गाँधी. नाम सुनते ही ज्यादातर लोगों के चेहरे पर मुस्कान आ जाती है. इसका कारण उनके तमाम गलतियां जो वीडियो के रूप में सोशल मीडिया पर तैरते रहते हैं. राहुल गांधी 2004 से सक्रिय राजनीति में हैं लेकिन "पप्पू" वाली उनकी ये इमेज 2012 के आसपास से बननी शुरू हुई। जिस आक्रमकता के साथ विपक्षी पार्टियों ने खासकर बीजेपी और पीएम मोदी ने उनपर हमला किया, उनके 8-9 साल के करियर में पहली बार हुआ, जिससे वह संभल नहीं पाए। कई बार इंटरव्यू और भाषण के दौरान उनका अटकना या किसी भी बात को स्पष्टता के साथ न रखना भी उनके खिलाफ गया और पप्पू वाले इमेज को बल मिला। हालांकि उन्होंने इस इमेज को तोड़ने की कोशिश बहुत दिनों बाद यानि हाल में समाप्त हुए संसद सत्र की दौरान की। जब उन्होंने पीएम मोदी को चैलेंज करते हुए आंख में आंख डाल कर भाषण दिया और बीजेपी से कहा- अगर आपको मैं पप्पू लगता हूं तो मैं पप्पू हूं। इस दौरान कई हमले पीएम मोदी पर करने के बाद जैसे ही भाषण खत्म हुआ तपाक से जाकर पीएम मोदी के गले लग गए, जिससे पीएम मोदी भी सकपका गए। कूछ लोग यह भी कहते हैं कि राहुल गांधी ने कांग्रेस को डूबाया, फिर ...

गुजरात में बिहार-यूपी के लोगों पर हमले के पीछे हो सकती है ये कहानी

असम, मुम्बई के रास्ते अब किसी एक घटना के बहाने बिहार-यूपी के लोगों को गुजरात से भगाया जा रहा है। कुछ के साथ मारपीट की घटना भी हुई है। एक 14 महीने की बच्ची से हुई रेप की शर्मनाक घटना ने गुजरात के लोगों में यह आक्रोश उत्पन्न कर दिया। रेप के आरोप में बिहार के एक शख्स की गिरफ्तारी के बाद कुछ वहां के लोग इन राज्यों के सभी लोगों को जिम्मेदार मान बैठे। ऐसा बिल्कुल भी नहीं है कि इस घटना के पीछे सालों से दबी वह बात नहीं होगी,  जिसको “रोजगार” कहते हैं। दरअसल असम, दिल्ली, मुम्बई की तरह बड़ी संख्या में गुजरात में भी यूपी-बिहार के लोग कारोबार और मजदूरी करने जाते हैं। इसका साधारण सा कारण है, इन दोनों राज्यों की तुलना में गुजरात में ज्यादा संसाधन। हमला करने वाले कई सालों से देख रहे थे कि उनके रोजगार में ये लोग दूसरे राज्यों से आकर रुकावट बन रहे हैं, आक्रोश का एक कारण ये भी था। लेकिन उन्होंने कभी इस बात पर ध्यान नहीं दिया होगा कि जो अब समझ आ रहा है तो वे इस घटना के बहाने अपने उस आक्रोश को भी निकाल रहे हैं। उन्हें सोचना चाहिए कि जब उनके पास रोजगार तथा पैसे की कमी नहीं थी तो बिहार और यूपी के...

रेपिस्ट के परिवारों पर भी होना चाहिए सजा का प्रावधान?

बिहार में जिस तरह से गंगा नहाने गई एक महिला से रेप की घटना हुई , हम भले ही इसके लिए सरकार, सिस्टम और पुलिस को जिम्मेदार माने लेकिन यह एक सामाजिक और पारिवारिक नाकामी भी है।   सबसे ज्यादा खौफनाक बात यह है कि देश में एक नया चलन शुरू हुआ है।   रेप और छेड़खानी का वीडियो बनाने का। इस जघन्य अपराध को अंजाम देने वाला शख्स वीडियो इसलिए ही बनाता होगा कि उसका मजा बाद में भी देखकर ले पाए और अपने दोस्तों को भी दिखा पाए। ऐसी स्थिति में अगर वह  पकड़े जाने के डर  से  वीडियो खुद अपलोड नहीं भी करता होगा तो कम से कम अपने दोस्तों को भेजता होगा। फिर वह दोस्त किसी और दोस्त को भेजता होगा। जिस कारण ये वीडियो हमलोगों के सामने आ पाता है। सोचिए अगर रेप करने और उसका वीडियो बनाने वाले लोग पकड़े नहीं जाते होंगे तो पता नहीं इस तरह की हरकत कई के साथ करते होंगे या कर चुके होंगे। पूर्व में इस तरह के कई खुलासे भी हुए हैं। अब मुख्य सवाल ये है इनको इतना हिम्मत और हौसला कहां से मिलता है? रेप करने और वीडियो बनाने का। इसमें पुलिस और सरकार को दोष देना कितना उचित है? जिस जगह पर ये घटना हुई अगर व...

किसान आंदोलन का क्यों नहीं होता अंत?

हर आंदोलन का एक अंत होता है, जैसे- देश की आजादी के लिए आंदोलन चला हम आजाद हो गए, आंदोलन खत्म। जय प्रकाश नारायण आन्दोलन चला, खत्म हो गया। अन्ना आंदोलन चला, खत्म हो गया। राम जन्मभूमि के लिए चल रहे हैं लेकिन ये भी कभी खत्म हो जाएगा। क्या कभी किसान आंदलोन खत्म हुआ नहीं, सालों से चलता आ रहा है और चलता ही रहेगा। कारण यह है कि आजादी की तरह किसानों का मुद्दा एक बार का तो है नहीं कि आज़ादी मिल गई बात खत्म। ये हर सीजन, हर साल बदलता रहता है और आता रहता है। कोई भी सरकार एक बार में चाहे कि ऐसा कुछ कर देंगे ताकि यह खत्म हो जाए, ऐसा नहीं होने वाला। हाल ही में दिल्ली में किसानों पर लाठी बरसाने का मामला आया तो चारों तरफ हंगामा मचा लेकिन क्या इस पर किसी ने भी गंभीर होकर सोचा। नहीं! सरकार क्या करती है कि एक बार, एक साल में कभी सूखार तो कभी दहाड़ में पैसे बांट देती है, कभी किसी एक फसल के लिए ऋण माफ कर देती है, किसी एक फसल के लिए सब्सिडी दे देती है और चाहती है बात यहीं खत्म हो जाएगी। ऐसा नहीं है हर प्रदेश में अलग-अलग तरीके की खेती होती है, जैसे उदाहरण के तौर पर- यूपी में गन्ना, बिहार में चावल और प...